अब दिव्यांग अभ्यर्थियों को यूपीएससी परीक्षा में मिलेगा पसंदीदा परीक्षा केंद्र

Jitendra Kumar Sinha
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संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने दिव्यांग अभ्यर्थियों के हित में एक ऐतिहासिक और सराहनीय निर्णय लिया है। अब 40 प्रतिशत या उससे अधिक दिव्यांगता वाले अभ्यर्थियों को परीक्षाओं के लिए उनके द्वारा आवेदन पत्र में चुना गया पसंदीदा परीक्षा केंद्र ही आवंटित किया जाएगा। यह फैसला न केवल प्रशासनिक सुधार का संकेत है, बल्कि यह संवेदनशील शासन और समान अवसर की सोच को भी मजबूती देता है।

दिव्यांग अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र तक पहुंचने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लंबी दूरी की यात्रा, परिवहन की सीमित सुविधाएं, सहायक उपकरणों की जरूरत और शारीरिक थकान जैसी समस्याएं अक्सर परीक्षा से पहले ही मानसिक दबाव बढ़ा देती हैं। इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए यूपीएससी ने यह निर्णय लिया है कि बेंचमार्क दिव्यांगता वाले प्रत्येक अभ्यर्थी को उसकी प्राथमिकता के अनुसार परीक्षा केंद्र दिया जाएगा, ताकि वह बिना अनावश्यक तनाव के परीक्षा दे सके।

यूपीएससी के अध्यक्ष अजय कुमार के अनुसार, आयोग ने पिछले पांच वर्षों के परीक्षा केंद्रों से जुड़े आंकड़ों का गहन विश्लेषण किया है। इस अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि दिल्ली, कटक, पटना और लखनऊ जैसे बड़े शहरों में परीक्षा केंद्रों की क्षमता बहुत जल्दी भर जाती है, क्योंकि यहां अभ्यर्थियों की संख्या अत्यधिक होती है। आम अभ्यर्थियों के लिए केंद्रों का आवंटन अक्सर उपलब्धता के आधार पर होता है, लेकिन दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए यह व्यवस्था कई बार असुविधाजनक साबित होती रही है।

नया निर्णय इस असमानता को दूर करने की दिशा में एक ठोस कदम है। इससे दिव्यांग अभ्यर्थियों को यह भरोसा मिलेगा कि आयोग उनकी विशेष आवश्यकताओं को समझता है और उन्हें मुख्यधारा में समान रूप से आगे बढ़ने का अवसर देना चाहता है। यह फैसला न केवल परीक्षा प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाता है, बल्कि संविधान में निहित समानता और गरिमा के अधिकार की भावना को भी साकार करता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से दिव्यांग अभ्यर्थियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे पूरी क्षमता के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग ले सकेंगे। साथ ही यह निर्णय अन्य भर्ती एजेंसियों और शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बन सकता है।

यूपीएससी का यह फैसला केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं है, बल्कि संवेदनशीलता, समान अवसर और मानवीय दृष्टिकोण की मिसाल है। यह दर्शाता है कि जब नीतियों में करुणा और व्यावहारिक समझ जुड़ती है, तब व्यवस्था वास्तव में सबके लिए सुलभ बनती है।



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