जम्मू-कश्मीर लंबे समय तक आतंकवाद की आग में झुलसता रहा है। इस हिंसा में न जाने कितने परिवारों ने अपने बेटे, भाई, पति और पिता खोए। वर्षों तक ऐसे परिवार न्याय, सहानुभूति और सम्मान की प्रतीक्षा करते रहे। इसी पीड़ा और इंतजार के बीच जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा उठाया गया कदम आतंक से पीड़ित परिवारों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आया है।
जम्मू में आयोजित एक कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकी हमलों में मारे गए लोगों के 41 परिजनों को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपे। यह केवल नौकरी देने का निर्णय नहीं था, बल्कि उन परिवारों के जख्मों पर मरहम लगाने की एक गंभीर कोशिश थी, जिन्हें दशकों तक सिर्फ आश्वासन ही मिले। इस अवसर पर उपराज्यपाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आतंकवाद से पीड़ित परिवारों को लंबे समय तक न्याय नहीं मिला और अब सरकार उनकी पीड़ा को समझते हुए ठोस कदम उठा रही है।
मनोज सिन्हा ने कहा कि आतंकवाद केवल निर्दोष लोगों की जान नहीं लेता है, बल्कि पूरे परिवार को आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से तोड़ देता है। ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह पीड़ित परिवारों को केवल संवेदना नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर भी दे। सरकारी नौकरी इन परिवारों के लिए आर्थिक सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक सम्मान भी सुनिश्चित करती है।
नियुक्ति पत्र प्राप्त करने वाले परिजनों के लिए यह पल बेहद भावुक था। कई लोगों की आंखों में आंसू थे लेकिन दुख के नहीं, बल्कि इस बात के कि वर्षों बाद उनकी पीड़ा को किसी ने समझा। कुछ ने कहा कि उनके परिवार के सदस्य की शहादत को आज सच्चा सम्मान मिला है। नौकरी मिलने से उनके बच्चों की पढ़ाई, परिवार का भविष्य और जीवन की स्थिरता अब सुरक्षित महसूस हो रही है।
उपराज्यपाल ने यह भी दोहराया है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सुरक्षा बलों की नहीं है, बल्कि पूरे समाज की है। पीड़ित परिवारों को मुख्यधारा से जोड़ना इस लड़ाई का अहम हिस्सा है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि भविष्य में भी ऐसे सभी पात्र परिवारों को सहायता और न्याय दिलाने की प्रक्रिया जारी रहेगी।
यह पहल स्पष्ट संदेश देती है कि नया जम्मू-कश्मीर उन लोगों को नहीं भूलेगा जिन्होंने आतंकवाद की सबसे बड़ी कीमत चुकाई है। यह कदम न केवल पीड़ित परिवारों के पुनर्वास की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ सरकार की संवेदनशील और मानवीय सोच को भी दर्शाता है। दशकों बाद सही मायनों में इंसाफ की दस्तक इन परिवारों के दरवाजे तक पहुंची है।
