समुद्र की गहराइयों में भारत की नई ताकत - “मानव रहित अंडरवाटर वाहन”

Jitendra Kumar Sinha
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21वीं सदी का युद्ध केवल जमीन और आकाश तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि समुद्र की अथाह गहराइयाँ भी अब रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का बड़ा मैदान बन चुका है। जिस तरह आसमान में ड्रोन युद्ध की तस्वीर बदल रहा है, उसी तरह पानी के भीतर काम करने वाले मानव रहित वाहन (Autonomous Underwater Vehicles – AUV) समुद्री सुरक्षा की परिभाषा को नए सिरे से गढ़ रहा है। भारत ने इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए “माइन न्यूट्रीलाइजेशन सिस्टम” (MNS) विकसित किया है, जो समुद्र के भीतर छिपे विस्फोटकों की पहचान कर उसे निष्क्रिय करने में सक्षम है। यह उपलब्धि न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में मील का पत्थर है, बल्कि नौसेना और तटरक्षक बल की क्षमताओं को भी कई गुना बढ़ाने वाली है।

समुद्री विस्फोटक सुरंगें या सी-माइंस इतिहास में सबसे किफायती लेकिन सबसे घातक हथियारों में गिना जाता है। यह जहाजों के नीचे, समुद्र की सतह के पास या गहराई में छिपाकर बिछाया जाता है। युद्धकाल में दुश्मन देशों द्वारा बंदरगाहों और समुद्री मार्गों को अवरुद्ध करने के लिए इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।

आज केवल युद्ध ही नहीं, बल्कि समुद्री डकैती और आतंकी गतिविधियों में भी सी-माइंस का इस्तेमाल होने लगा है। व्यापारिक जहाजों, तेल टैंकरों और यात्री पोतों के लिए यह एक गंभीर चुनौती बन चुका है।

भारत एक विशाल समुद्री सीमा वाला देश है। लगभग 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा, हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती भू-राजनीतिक गतिविधियाँ, प्रमुख बंदरगाह, व्यापारिक मार्ग और नौसैनिक अड्डे। इन सभी कारणों से समुद्र के भीतर सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत की प्राथमिक रणनीतिक आवश्यकता बन गया है।

“माइन न्यूट्रीलाइजेशन सिस्टम” (MNS) एक ऐसा अत्याधुनिक सिस्टम है, जिसमें कई ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल (AUV) मिलकर काम करता है। इसका उद्देश्य समुद्र के भीतर मौजूद विस्फोटकों की खोज, पहचान और निष्क्रियता है। इस सिस्टम को विकसित करने में देश की प्रमुख रक्षा अनुसंधान संस्थाओं ने मिलकर काम किया है, जिनमें शामिल हैं नेवल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेबोरेटरी (NSTL), विशाखापट्टनम। नेवल फिजिकल एंड ओसियनोग्राफिक लेबोरेटरी (NPOL), पुणे और डीआरडीओ से जुड़ी अन्य अनुसंधान इकाइयाँ। यह सिस्टम 70 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी कंटेंट के साथ तैयार किया गया है।

MNS की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कई अंडरवाटर व्हीकल एक साथ काम करता है। कुछ वाहन खोज (Search) के लिए, कुछ पहचान (Identification) के लिए और कुछ निष्क्रियता (Neutralization) के लिए। इन AUVs में लगे होते हैं साइड स्कैन सोनार- समुद्र तल की विस्तृत इमेजिंग के लिए। अंडरवाटर कैमरा (UW Cameras)-  दृश्य पुष्टि के लिए। मैग्नेटिक और ध्वनिक सेंसर- विस्फोटकों की पहचान के लिए। जैसे ही कोई संदिग्ध वस्तु सिस्टम की सीमा में आता है तो तुरंत अलर्ट जनरेट होता है। यह जानकारी पोत या तटीय नियंत्रण केंद्र तक पहुंचती है और ऑपरेटर वास्तविक समय में निर्णय ले सकता है।

सोनार और सेंसर समुद्र तल पर मौजूद किसी भी असामान्य वस्तु को पहचान लेता है। एआई आधारित सॉफ्टवेयर यह तय करता है कि वस्तु प्राकृतिक है, मलबा है या विस्फोटक सुरंग (Mine) है। यदि वस्तु विस्फोटक पाया जाता है, विशेष AUV उसे लक्ष्य बनाता है। नियंत्रित विस्फोट या डिसेबलिंग तकनीक से उसे निष्क्रिय करता है। यह पूरी प्रक्रिया मानव जीवन को जोखिम में डाले बिना पूरा होता है।

पहले गोताखोरों को जोखिम भरे हालात में उतरना पड़ता था। अब यह जोखिम लगभग समाप्त हो जाएगा। AUVs चौबीसों घंटे काम कर सकता है, थकान या सीमित दृश्यता से प्रभावित नहीं होता है। युद्धकाल में समुद्री मार्गों को जल्द साफ करना किसी भी नौसेना के लिए निर्णायक बढ़त साबित हो सकता है।

भारत अब तक इस प्रकार की तकनीक के लिए विदेशी देशों पर निर्भर रहा है। MNS के विकसित होने से आयात पर निर्भरता घटेगी। विदेशी मुद्रा की बचत होगी और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। यह पहल मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियानों की भावना को साकार करता है।

इस तकनीक का उपयोग केवल सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है। भविष्य में AUVs का इस्तेमाल हो सकता है समुद्री जैव-विविधता के अध्ययन में। गहरे समुद्र में खनिज खोज में। पाइपलाइन और केबल निरीक्षण में और समुद्री आपदा प्रबंधन में।

आज अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय देश इस तकनीक पर तेजी से काम कर रहा है। भारत का MNS प्रोजेक्ट दिखाता है कि देश अब केवल उपभोक्ता नहीं है, बल्कि टेक्नोलॉजी क्रिएटर बनने की ओर अग्रसर है।

डीआरडीओ जर्नल के अनुसार यह सिस्टम फिलहाल समुद्री परीक्षणों के चरण में है। प्रारंभिक नतीजा बेहद उत्साहजनक है। आने वाले समय में इसे नौसेना में शामिल किया जाएगा। भविष्य में इसके और उन्नत संस्करण विकसित किया जा सकता है, जिनमें लंबी दूरी तक संचालन, ज्यादा गहराई में काम करने की क्षमता और पूर्णतः स्वायत्त निर्णय प्रणाली।

मानव रहित अंडरवाटर वाहन और माइन न्यूट्रीलाइजेशन सिस्टम भारत की समुद्री सुरक्षा के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता है। यह तकनीक न केवल दुश्मन की साजिशों को नाकाम करने में सहायक होगी, बल्कि समुद्र को सुरक्षित, व्यापार को निर्बाध और मानव जीवन को संरक्षित रखने में भी निर्णायक भूमिका निभाएगी।



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