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नया साल जहां आम लोगों के लिए नई उम्मीदें लेकर आता है, वहीं कार खरीदारों की जेब पर बोझ भी बढ़ाने वाला है। हर साल जनवरी में कार कंपनियां कीमतें बढ़ाती हैं, लेकिन इस बार बढ़ोतरी के पीछे कई गंभीर आर्थिक कारण भी जुड़े हुए हैं। रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है, कमोडिटी कीमतों में तेजी देखी जा रही है और ग्रामीण बाजार में मांग को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। इन सभी कारणों ने ऑटो सेक्टर पर दबाव बढ़ा दिया है, जिसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ने वाला है।
कारें बनाने में स्टील, एल्यूमिनियम, कॉपर, रबर और कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट लगते हैं। ये सभी कमोडिटी महंगी हो चुकी हैं। जब कच्चा माल महंगा होता है, तो कंपनियों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
दूसरी ओर, रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। कारों में लगने वाले कई हाई-टेक पार्ट्स विदेशों से आयात किए जाते हैं। रुपये की कमजोरी का मतलब है, इन्हें खरीदने में कंपनियों को अधिक पैसे खर्च करने पड़ेंगे।
अभी ग्रामीण इलाकों में कारों की मांग उतनी मजबूत नहीं है जितनी कंपनियां चाहती थी। ऐसे में बिक्री का दबाव और लागत का भार मिलकर कंपनियों को कीमतें बढ़ाने के लिए मजबूर कर रहा है।
देश की दो बड़ी वाहन निर्माता कंपनियां, टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा, ने साफ कर दिया है कि जनवरी 2026 से कीमतों में बढ़ोतरी की जाएगी।
टाटा मोटर्स के एमडी एवं सीईओ शैलेश चंद्रा ने विश्लेषकों से बातचीत में कहा है कि कच्चे माल की लगातार बढ़ती कीमतें चिंता का विषय हैं। उन्होंने संकेत दिया कि जनवरी की चौथी तिमाही में दाम निश्चित रूप से बढ़ाए जाएंगे ताकि बढ़ी उत्पादन लागत को संतुलित किया जा सके।
महिंद्रा एंड महिंद्रा भी इसी दिशा में फैसला लेने की तैयारी में है। कंपनी ने कहा है कि इस बढ़ी हुई लागत को वह अब और नहीं झेल सकती।
हालांकि कंपनियों ने अभी प्रतिशत या रकम बताई नहीं है, लेकिन उद्योग विशेषज्ञों का अनुमान है कि कारों के दाम 2% से 5% तक बढ़ सकते हैं। यह कार के मॉडल और सेगमेंट पर निर्भर करेगा।
नई कार खरीदने की सोच रहे लोगों की जेब पर सीधा असर, एंट्री-लेवल से लेकर प्रीमियम सेगमेंट, सभी गाड़ियाँ महंगी होगी, फाइनेंस करवाने वाले ग्राहकों की EMI भी बढ़ सकती है, पुराने मॉडल खरीदने वालों के लिए डिस्काउंट्स पर निर्भर रहेगा प्रभाव।
नया साल ऑटो सेक्टर के लिए चुनौतियों से भरा हो सकता है, लेकिन उपभोक्ताओं के लिए यह “महंगी सवारी” लेकर आ रहा है। रुपये की कमजोरी, बढ़ती कमोडिटी कीमतें और लागत दबाव ने कंपनियों को कीमतें बढ़ाने पर मजबूर किया है।
