इतिहास को मिला नया सम्मान - अंडमान में हुआ वीर सावरकर की प्रतिमा का अनावरण

Jitendra Kumar Sinha
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अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के दक्षिण अंडमान जिला में शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और वैचारिक क्षण साक्षी बना, जब ब्योदनाबाद स्थित एक पार्क में “स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर” की प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत उपस्थित थे। प्रतिमा के अनावरण के साथ ही दोनों नेताओं ने परिसर में रुद्राक्ष के पौधे भी रोपे, जो इस आयोजन को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीकात्मकता प्रदान करता है।

वीर सावरकर का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन क्रांतिकारियों में शामिल है, जिनका जीवन त्याग, संघर्ष और विचारों की दृढ़ता का प्रतीक रहा है। अंडमान की धरती से उनका गहरा ऐतिहासिक संबंध रहा है, क्योंकि अंग्रेजी शासन के दौरान उन्हें सेल्युलर जेल में कठोर कारावास झेलना पड़ा था। ऐसे में अंडमान में उनकी प्रतिमा की स्थापना केवल एक स्मारक नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन की उस पीड़ा और साहस की याद भी है, जिसने भारत को आजादी की ओर अग्रसर किया था।

प्रतिमा दक्षिण अंडमान जिला के एक पार्क में स्थापित की गई है, जिसे आने वाले समय में स्मृति स्थल और प्रेरणा केंद्र के रूप में विकसित किए जाने की संभावना जताई जा रही है। कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने कहा है कि सावरकर का जीवन राष्ट्रभक्ति, सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक चेतना से जुड़ा रहा है। उनके विचारों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी, बल्कि भारतीय समाज में आत्मसम्मान और स्वाभिमान की भावना को भी प्रबल किया है।

गृह मंत्री अमित शाह ने इस अवसर पर कहा कि वीर सावरकर का योगदान लंबे समय तक उपेक्षित रहा है, लेकिन आज देश उनके संघर्ष और बलिदान को सही संदर्भ में समझने और सम्मान देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। वहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सावरकर को भारत की सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक बताते हुए कहा है कि उनका चिंतन आज भी राष्ट्रनिर्माण के लिए प्रासंगिक है।

प्रतिमा अनावरण के बाद रुद्राक्ष के पौधे रोपण को पर्यावरण संरक्षण और आध्यात्मिक संतुलन का संदेश माना जा रहा है। यह संकेत देता है कि राष्ट्र की स्मृति और प्रकृति, दोनों का संरक्षण साथ-साथ चलना चाहिए।

अंडमान-निकोबार में वीर सावरकर की प्रतिमा का अनावरण इतिहास, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक चेतना का संगम है। यह पहल न केवल अतीत को सम्मान देने का प्रयास है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरक गाथाओं से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।


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