आमतौर पर इंसानी बस्तियों एवं सुदूर जंगलों में बरगद-पीपल जैसे बड़े-बड़े पेड़ो पर आशियाना बनाने वाले कौओं सहित अन्य पक्षियों की दिनोदिन हो रही कमी भी झकझोर रही है। प्रायः देखा जा रहा है कि कई राज्यों में प्रवासी पक्षियों की तादात बहुत कम हो गई है। इसका मूल कारण पेड़ के कटने से पक्षियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं और पक्षियों को अब मानव निर्मित कृत्रिम आवासों पर निर्भर होना पड़ रहा है।
सर्वविदित है कि जंगल, मानव सहित सभी जीवों को जीवन देता है। लेकिन जंगलों से बड़े एवं फलदार पेड़ों के नष्ट होने से वन्यजीवों एव पक्षियों पर इसका संकट स्पष्ट दिखाई देने लगा है। जंगलों में फलदार पेड़ों के नहीं रहने से वानर, लंगूर एव अन्य जंगली जानवर बस्तियों में आने को विवश हो रहे है, यही हाल परिंदे-पक्षियों की भी है। जंगलों से बरगद, पीपल, गूलर, रेणी, आम, सहजन, गुरजन, तेंदू, बीजा, महुआ, इमली, केंत, गूंदी, नीम, कटहल, खजूर, पलाश, पारस पीपल, जामुन, अर्जुन, जंगल जलेबी, अमलतास, देशी बबूल एव बिल्व-पत्र जैसे महत्वपूर्ण पेड़ों की अवैध कटाई होने के कारण यह सभी लुप्त प्राय हो रहे है। इसका असर राष्ट्रीय पक्षी मोर, कौआ, उल्लू, तौते, मैना सहित कई प्रजातियों पर दिखाई पड़ने लगा है। जबकि सबलोग जानते है कि जैव-विविधता के संरक्षक होते है बड़े एवं फलदार पेड़।
पशु-पक्षियों की कई प्रजातियों के लिए प्राकृतिक आवास बड़े पेड़ हीं होते है, जिनके सहारे मौसम की विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहता है। उचित तो यही होगा कि हमलोगों को मिलकर वन क्षेत्रों के साथ-साथ चारागाह एवं सार्वजनिक भूमि पर फलदार पेड़ लगाने का अभियान शुरू करें और उसे संरक्षित करें ताकि समय रहते स्थिति को संभाला जा सके। हमलोग जानते हैं कि प्रकृति में संतुलन के लिए हर जीव-जन्तु और वनस्पति का महत्वपूर्ण स्थान एवं अहम भूमिका होती है। छोटे जीव चींटी से लेकर बड़े जानवर हाथी तक का जीवन चक्र एक संतुलित खाद्य श्रंखला पर निर्भर रहता है। किसी एक जीव के समाप्त होने पर इसका सीधा असर पूरी जैव-विविधता पर पड़ती है और इससे मानव भी नहीं बच सकता है।
शहरों में शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार और बड़े वृक्षों की तेजी से कम होने के कारण भी परिंदे-पक्षियों के साथ-साथ सभी जीवों पर प्रतिकूल असर पड़ने लगा है। वहीं खेती-बाड़ी में रासायनिक खाद्यों और कीटनाशकों का दिनोदिन अत्यधिक इस्तेमाल होने के कारण भी जीवों की कई प्रजातियाँ तो नष्ट हो गया है और इसका असर बड़े जीव-जन्तुओं पर भी पड़ रहा है। अब तो इंटरनेट और इलेक्ट्रोनिक सामानों का दायरा भी इतना बढता जा रहा है कि जीवों के लिए घातक तो है ही, मनुष्यों के लिए भी घातक सिद्ध होने लगा है। यदि समस्या का समाधान समय रहते प्रभावी ढंग से नहीं निकाला गया तो आने वाले समय में पूरी जैव-विविधता के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।