नर्मदा नदी भारतीय प्रायद्वीप की दो प्रमुख नदियों गंगा और गोदावरी से विपरीत दिशा में बहती है, यानि पूर्व से पश्चिम की ओर। इस नदी को गंगा से भी पवित्र माना गया है।
मत्स्यपुराण में नर्मदा नदी की महिमा वर्णित है कि ‘कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।’
एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान इस प्रकार किया गया है।
“गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।“
मान्यता है कि कई हजारों वर्ष पहले नर्मदा नदी बनकर जन्म ली। वहीं सोनभद्र भी नदी बनकर जन्म लिया। दोनों अमरकंट की पहाड़ियों में घुटनों के बल चलते हुए बड़ा हुए। दोनों ने कसमें खाई। जीवन भर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ने की। एक-दूसरे को धोखा नहीं देने की।
एक दिन अचानक रास्ते में सोनभद्र नदी के सामने नर्मदा नदी की सखी जुहिला नदी आ गई और सोनभद्र नदी को मोह ली। जुहिला नदी आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है। सोनभद्र नदी नर्मदा नदी को भूल गया। नर्मदा नदी ने बहुत कोशिश की सोनभद्र नदी को समझाने की। लेकिन सोनभद्र नदी जुहिला नदी के लिए बावरा हो गया था। नर्मदा नदी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया और नर्मदा नदी ने अपनी दिशा बदल ली। रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आईं। हरे-भरे जंगल आए। लेकिन वह रास्ता बनाती चली गईं। कल-कल छल-छल का शोर करती हुई मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंचीं। मान्यता है कि आज भी नर्मदा नदी की परिक्रमा करने में कहीं-कहीं नर्मदा का करूण विलाप सुनाई पड़ता है।
मान्यता यह भी है कि नर्मदा नदी और शोण भद्र नदी की शादी होने वाली थी। विवाह मंडप में बैठने से ठीक एन वक्त पर नर्मदा नदी को पता चला कि शोण भद्र नदी की दिलचस्पी उसकी दासी जुहिला नदी (यह आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है) में अधिक है। प्रतिष्ठत कुल की नर्मदा यह अपमान सहन ना कर सकी और मंडप छोड़कर उलटी दिशा में चली गई।
नर्मदा नदी बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और अरब सागर की ओर मुड़ गई। भौगोलिक तथ्यों के अनुसार देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गई है।
नर्मदा नदी की कथा जनमानस में कई रूपों में प्रचलित है। कहा जाता है कि है नर्मदा नदी एक बिंदू विशेष से शोण भद्र नदी से अलग होती दिखाई पड़ती है। कथा की फलश्रुति यह भी है कि नर्मदा नदी को इसीलिए चिरकुंवारी नदी कहा गया है और ग्रहों के किसी विशेष मेल पर स्वयं गंगा नदी भी यहां स्नान करने आती है।