कांग्रेस की साजिश: हमारे राजाओं को भुलाकर मुगलों का महिमामंडन!

Jitendra Kumar Sinha
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स्वतंत्रता के बाद से, भारत की शिक्षा नीति और पाठ्यक्रम हमेशा राजनीतिक हस्तक्षेप के अधीन रहे हैं। कांग्रेस सरकारों ने दशकों तक भारतीय शिक्षा प्रणाली पर अपना प्रभाव बनाए रखा और इतिहास को एक विशेष दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। इसके परिणामस्वरूप, हमारे स्कूलों में मुगलों के इतिहास को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया गया, जबकि हमारे गौरवशाली हिन्दू, राजपूत, मराठा, और दक्षिण भारतीय शासकों को पाठ्यक्रम में हाशिए पर डाल दिया गया।



मुगलों पर अत्यधिक जोर

भारतीय स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले इतिहास की किताबों में मुगलों, विशेष रूप से अकबर, औरंगज़ेब, बाबर, और शाहजहाँ को एक प्रभावशाली, दयालु और कुशल शासक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि मुगलों का भारत के इतिहास में योगदान महत्वपूर्ण है, लेकिन समस्या यह है कि हमारे स्वदेशी राजाओं और योद्धाओं को उचित सम्मान और स्थान नहीं दिया गया

उदाहरण के लिए:

  • राजा राजा चोल और राजेंद्र चोल – जिन्होंने भारत का सबसे शक्तिशाली समुद्री साम्राज्य बनाया, उन्हें कुछ ही पैराग्राफ में समेट दिया जाता है।
  • महाराणा प्रताप – जिन्होंने अकबर के खिलाफ वीरतापूर्वक संघर्ष किया, लेकिन उनकी उपलब्धियों को अकबर की तुलना में कम आंका गया।
  • छत्रपति शिवाजी महाराज – जिन्होंने एक हिन्दवी स्वराज की स्थापना की और मुगलों के अत्याचार का डटकर सामना किया, लेकिन उन्हें अपेक्षित महत्व नहीं दिया गया।
  • ललितादित्य मुक्तपीड (कश्मीर के राजा) – जिन्होंने अपना साम्राज्य मध्य एशिया तक फैलाया, लेकिन इतिहास की किताबों में उनकी चर्चा नगण्य है।
  • कृष्णदेवराय (विजयनगर साम्राज्य) – दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक, जिनकी शासन शैली और उपलब्धियों को कम करके आंका गया।

वहीं, मुगल शासकों को केवल महान प्रशासक और कला संरक्षक के रूप में दिखाया जाता है, जबकि उनकी आक्रामक नीतियों, मंदिरों के विध्वंस, जबरन धर्म परिवर्तन और जज़िया कर (औरंगज़ेब के समय में) जैसे कृत्यों का उल्लेख तक नहीं किया जाता।



विदेशी आक्रमणों के खिलाफ हिन्दू प्रतिरोध की अनदेखी

इतिहास की किताबों में सबसे बड़ी चूक यह रही है कि उन्होंने हिन्दू योद्धाओं द्वारा विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ किए गए संघर्ष को पर्याप्त महत्व नहीं दिया। उदाहरण के लिए:

  • पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी को संक्षेप में समेट दिया गया, जबकि मोहम्मद गोरी द्वारा किए गए आक्रमणों को अधिक विस्तार से बताया गया।
  • गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह की मुगलों के खिलाफ वीरतापूर्ण लड़ाई को सीमित कर दिया गया, जबकि यह भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
  • राणा सांगा और हेमू विक्रमादित्य जैसे योद्धाओं को लगभग भुला दिया गया, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ निर्णायक लड़ाइयाँ लड़ीं।

इन योद्धाओं ने भारत की संस्कृति और सभ्यता को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन कांग्रेस सरकारों द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति ने इनके योगदान को नजरअंदाज कर दिया।



राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इतिहास से छेड़छाड़

ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस सरकार ने "धर्मनिरपेक्षता" के नाम पर इतिहास को इस प्रकार लिखा कि मुगलों को सहिष्णु और भारतीय संस्कृति में घुले-मिले हुए दिखाया जाए। जबकि वास्तविकता यह थी कि कई मुगल शासकों ने हिन्दू धर्मस्थलों को नष्ट किया, जबरन धर्म परिवर्तन कराए और भारत की परंपराओं को दबाने की कोशिश की।

इतिहास को तोड़-मरोड़कर पढ़ाने के पीछे एक राजनीतिक एजेंडा था। कांग्रेस सरकारें यह सुनिश्चित करना चाहती थीं कि "गंगा-जमुनी तहज़ीब" की अवधारणा को बढ़ावा दिया जाए, लेकिन इसके चलते भारतीय योद्धाओं के संघर्ष और बलिदान को हाशिए पर डाल दिया गया। जब इतिहास को तथ्यों के आधार पर संशोधित करने की कोशिश की जाती है, तो इसे "भगवाकरण" या "इतिहास का राजनीतिकरण" कहकर आलोचना की जाती है।



क्या करना चाहिए?

हमारे शिक्षा प्रणाली को इस राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करने की आवश्यकता है। छात्रों को किसी एक पक्षीय दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए

  • संतुलित इतिहास: केवल मुगलों या अन्य विदेशी शासकों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हमें मराठा, राजपूत, सिख, चोल, विजयनगर और अन्य भारतीय राजाओं की उपलब्धियों को समान रूप से पढ़ाना चाहिए
  • सच्चाई को सामने लाना: मुगलों के योगदान के साथ-साथ उनके नकारात्मक पहलुओं पर भी चर्चा होनी चाहिए, ताकि छात्र पूर्ण ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्राप्त कर सकें।
  • क्षेत्रीय इतिहास को महत्व: भारत के विविध इतिहास को दर्शाने के लिए प्रत्येक राज्य और क्षेत्र की ऐतिहासिक घटनाओं और महापुरुषों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

हाल ही में, कुछ प्रयास हुए हैं जिनमें पाठ्यक्रम में बदलाव कर भारतीय योद्धाओं को उचित स्थान देने की कोशिश की गई है। लेकिन यह केवल शुरुआत है। हमें एक निष्पक्ष और संतुलित शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़ना होगा, जहाँ इतिहास को किसी राजनीतिक एजेंडे से नहीं, बल्कि ऐतिहासिक सत्यता के आधार पर पढ़ाया जाए। 

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