वाटरफ्लाई टेक्नोलॉजीज आइआइटी मद्रास की मदद से भारत में बन रही है बिजली से उड़ने वाली नाव। अब वह दिन दूर नहीं होगा, जब चेन्नई से कोलकाता की दूरी केवल तीन घंटे की होगी और भारा होगी मात्र 600 रुपये।
"बिजली से उड़ने वाली नाव" को पूरा करने की जिम्मेदारी ले रखा है मद्रास के स्टार्टअप वाटरफ्लाई टेक्नोलॉजीज, और इस प्रोजेक्ट में आइआइटी मद्रास वाटरफ्लाई टेक्नोलॉजीज सहायता कर रही है। इसके तहत कंपनी, "बिजली से उड़ने वाली नाव (ई-फ्लाइंग बोट) या विंग-इन-ग्राउंड एयरक्राफ्ट" विकसित कर रहा है, जिसे इलेक्ट्रिक समुद्री ग्लाइडर के रूप में जाना जाता है। जल्द ही यह तटीय क्षेत्रों में यात्रियों और कार्गो का परिवहन करता दिखेगा।
बेंगलुरु में हुए "एयरो इंडिया शो" में वाटरफ्लाई टेक्नोलॉजीज ने अपना डिजाइन प्रदर्शित कियाथा, जिसका प्रोटोटाइप जल्द ही आने वाला है। "बिजली से उड़ने वाली नाव" की गति विमान जैसी होती है। यह नाव पानी से करीब चार मीटर की ऊंचाई पर उड़ती है और अपनी पूरी यात्रा के दौरान उस ऊंचाई को बनाये रखती है।
"बिजली से उड़ने वाली नाव" सिर्फ पर पानी ही नहीं, बर्फ और रेगिस्तान पर भी उड़ान भरेगी। वाटरफ्लाई टेक्नोलॉजीज ने विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए नावों को एयरलाइन ऑपरेटरों को बेचने की योजना बनायी है। "बिजली से उड़ने वाली नाव" पानी के लिए डिजाइन किया गया है, लेकिन यह बर्फ, रेगिस्तान या किसी भी चुनौती भरे इलाके पर भी उड़ सकता है। यह नाव पारंपरिक हवाई यात्रा और नौकाओं के लिए एक स्थायी विकल्प है।
"बिजली से उड़ने वाली नाव" 2026 तक अंतरराष्ट्रीय संगठन के तहत भारतीय शिपिंग रजिस्टर से प्रमाणन हासिल करने का लक्ष्य रखा है। वहीं 2029 तक पहला अंतरमहाद्वीपीय मार्ग दुबई से लॉस एंजिलिस तक यात्रा करेगी।
"बिजली से उड़ने वाली नाव" 1,600 किलोमीटर की यात्रा यानि कोलकाता से चेन्नई तक के लिए प्रति सीट सिर्फ 600 रुपये का खर्च आयेगा, जो एसी थ्री-टियर ट्रेन टिकट से काफी सस्ता होगा। जो कोलकाता से चेन्नई एसी थ्री-टियर ट्रेन का किराया 1,500 रुपये से कम है।