राज्यसभा में एक बार फिर हंगामा हुआ, और इस बार केंद्र में थे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। नई शिक्षा नीति (NEP) जैसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी चाहिए थी, लेकिन खड़गे और उनकी पार्टी ने इसे भी राजनीतिक अखाड़ा बना दिया। यह स्पष्ट है कि कांग्रेस को देश के भविष्य और युवाओं की शिक्षा से अधिक अपनी राजनीतिक नौटंकी की चिंता है।
खड़गे का गैर-जिम्मेदाराना रवैया
राज्यसभा में खड़गे के बयान ने फिर साबित कर दिया कि कांग्रेस के नेता केवल बेबुनियाद आरोप लगाने में ही सक्षम हैं। नई शिक्षा नीति देश में शिक्षा प्रणाली को आधुनिक और व्यावहारिक बनाने के लिए लाई गई है, लेकिन खड़गे और उनकी पार्टी इसे लेकर बिना सिर-पैर की दलीलें दे रहे हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस को शिक्षा सुधार से डर लग रहा है? या फिर यह उनकी मानसिकता का प्रतिबिंब है, जो चाहती है कि भारत की युवा पीढ़ी कभी आगे न बढ़े?
नई शिक्षा नीति से इतनी दिक्कत क्यों?
केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति छात्रों को रटने की बजाय समझने, व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने, मातृभाषा में पढ़ाई को प्राथमिकता देने और तकनीकी सुधारों पर केंद्रित है। यह सुधार कांग्रेस के उस एजेंडे पर सीधा प्रहार करता है, जिसमें वे शिक्षा को सिर्फ अपने राजनीतिक हथकंडों के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं।
- मातृभाषा में शिक्षा: कांग्रेस ने हमेशा अंग्रेजी वर्चस्व को बढ़ावा दिया, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा हुई। अब जब मोदी सरकार भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा को बढ़ावा दे रही है, तो कांग्रेस और खड़गे को परेशानी हो रही है।
- रोजगार उन्मुख शिक्षा: पुरानी शिक्षा नीति से युवा केवल डिग्रीधारी बेरोजगार बन रहे थे। नई नीति उन्हें हुनरमंद और आत्मनिर्भर बनाएगी। लेकिन कांग्रेस को यह रास नहीं आ रहा, क्योंकि उनका खेल ही बेरोजगार युवाओं को बरगलाकर वोट बैंक बनाना है।
- वैश्विक स्तर पर भारतीय शिक्षा की पहचान: NEP भारत को शिक्षा में विश्वस्तरीय पहचान दिलाने की कोशिश कर रही है, लेकिन कांग्रेस इसे अस्थिर करने में लगी है।
कांग्रेस की दोहरी मानसिकता
खड़गे और उनकी पार्टी तब चुप रहते हैं जब कांग्रेस शासित राज्यों में शिक्षा की बदहाली चरम पर होती है। क्या खड़गे ने कभी राजस्थान, छत्तीसगढ़ या पंजाब में शिक्षा सुधारों की वकालत की? नहीं! लेकिन जैसे ही मोदी सरकार कोई दूरगामी सुधार करती है, कांग्रेस उसमें रोड़े अटकाने के लिए संसद में नाटक करने लगती है।
खड़गे की बयानबाजी: दिशाहीन और अपरिपक्व
खड़गे का रवैया न सिर्फ गैर-जिम्मेदाराना था, बल्कि यह भी दिखाता है कि कांग्रेस आज नए भारत की सोच से कोसों दूर है। जब देश विकास की ओर बढ़ रहा है, तब विपक्ष को रचनात्मक आलोचना करनी चाहिए, लेकिन खड़गे ने इसे सिर्फ हंगामे और अव्यवस्था में बदल दिया।
कांग्रेस और खड़गे जैसे नेता यह समझने में नाकाम रहे हैं कि भारत अब 1950 या 1970 का भारत नहीं है। अब देश जागरूक है, और कांग्रेस की राजनीतिक चालें अब ज्यादा दिनों तक नहीं चलेंगी। नई शिक्षा नीति युवाओं को सशक्त बनाने के लिए है, न कि किसी राजनीतिक दल के प्रचार के लिए। खड़गे जी, अगर आपके पास कोई ठोस सुझाव है तो दीजिए, लेकिन बेवजह संसद की गरिमा को तार-तार मत कीजिए!