चंद्रमा की सतह के तापमान को पहली बार दक्षिणी उच्च अक्षांश ब. पर 10 सेंटीमीटर की गहराई तक मापने का श्रेय भारत को दिया गया है। इससे पहले अमरीकी चंद्र मिशन अपोलो-15 और 17 ने भी चंद्रमा के मू-मध्य रेखीय क्षेत्र में चंद्र सतह के तापमान का मापन किया था। लेकिन यह मापन कुछ मीटर की गहराई में केंद्रीत था।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अनुसार, चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम के पे-लोड - (वैज्ञानिक उपकरण) चंद्र सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट (चैस्ट) ने दक्षिणी ध्रुवीय प्रदेश में चंद्रमा की ऊपरी सतह के तापमान का मापन किया। यह मापन 10 सेमी गहराई तक किया गया। चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद चैस्ट पे-लोड ने चंद्रमा की मिट्टी में प्रवेश किया और एक चंद्र दिवस (लगभग 10 पृथ्वी दिवस, 24 अगस्त से 2 सितम्बर 2023 तक) तक प्रत्येक एक संकेंड के अंतराल पर सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक ऊपरी सतह के तापमान का मापन किया। इसरो वैज्ञानिकों की एक टीम ने दक्षिणी ध्रुव के शिवशक्ति प्वाइंट पर विभिन्न स्थानों पर 10 ताप सेंसरों की मदद से 10 सेंटीमीटर की गहराई तक का मापन किया।
इसरो के अनुसार, अमरीकी चंद्र मिशन अपोलो-15 और 17 ने भी चंद्रमा के भू-मध्य रेखीय क्षेत्र में चंद सतह के तापमान का मापन किया था। लेकिन वह मापन कुछ मीटर की गहराई में किया था। चंद्रमा की मिट्टी की निचली परतों तक सौर ताप प्रवाह के प्रसार का आकलन करने के लिए बंद्रमा की ऊपरी सतह के नीचे पहले कुछ सेंटीमीटर की जांच करने की आवश्यकता थी। यह अनूठी उपलब्धि चंद्रयान 3 ने हासिल की। वह भी दक्षिणी ध्रुवीय प्रदेश में उच्च अक्षांशों पर जो चंद्र विज्ञान में एक बड़ी प्रगति है। चंद्रयान-3 से एक चंद्र दिवस तक किए गए थैस्ट अवलोकनों से पता चला कि चंद्रमा की सतह का तापमान भू-मध्य रेखीय क्षेत्रों के विपरीत उच्च अक्षांशों पर मीटर स्केल पर स्थानिक परिवर्तनशीलता दर्शाता है। अब तक चंद्रमा के ध्रुवीय प्रदेशों से इस तरह का कोई भी माप उपलब्ध नहीं था।
इसरो के अनुसार, इस परिणाम का वैज्ञानिक और तकनीकी दोनों तरह से महत्व है। सतही ऊष्मा के प्रभाव की गहराई को समझने के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि चंद्रमा की मिट्टी की ऊपरी परत के माध्यम से गर्मी कैसे फैलती है। चूंकि चंद्रमा पर हवा नहीं है, इसलिए यह परत बहुत गर्म और बहुत ठंडी हो जाती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि चंद्रमा की ऊपरी परत कितनी अच्छी तरह से गर्मी का संचालन करती है या यह कितनी गर्मी धारण करती है। इससे तापमान के परिसंचरण और सतह के नीचे के तापमान की भविष्यवाणी किया जा सकता है और समझा जा सकता है कि सूर्य का प्रकाश चंद्रमा के साथ कैसे संपर्क करता है। यह भविष्य की यात्राओं की योजना बनाने और चंद्रमा पर रहने के लिए सुरक्षित स्थानों को डिजाइन करने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा, गर्मी पर मिट्टी की प्रतिक्रिया से यह जानकारी मिलेगी कि उल्कापिंडों और सौर हवाओं ने समय के साथ चंद्रमा की सतह को कैसे बदल दिया।
इसरो वैज्ञानिकों के अनुसार, शिवशक्ति प्वाइंट (जहां चंद्रयान-3 ने लैंड किया था) के सतह का अधिकतम तापमान 355 केल्विन (0.5 केल्विन कम या ज्यादा) था। पूर्व अवलोकनों के आधार पर अनुमान था कि यहां का तापमान 330 केल्विन (3 केल्विन कम या ज्यादा) होगा। इसरो का मापन अधिक सटीक माना गया है क्योंकि यह यथात्थान पर मौजूद उपकरण से किया गया। इसरो वैज्ञानिकों ने लेंडर के पे-लोड चैस्टे को इस तरह से तैनात किया गया था कि वह सूर्य की सीध में भी था।
