राजस्थान के झुंझुनूं से मिली जानकारी के अनुसार, शेखावाटी में करीब 300 वर्ष पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए भद्रा में होलिका दहन किया गया। जबकि सर्वविदित है कि पूरे देश के अधिकतर हिस्सों में होलिका दहन के समय भद्रा को टाला जाता है।
भद्रा में होलिका दहन के समय हजारों की संख्या में महिलाएं और पुरुष उमड़े थे। इस परंपरा के संबंध में स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परम्परा करीब तीन सौ साल से ज्यादा पुरानी है। भद्रा में होलिका दहन की यह परंपरा शेखावाटी में, झुंझुनूं के छावनी बाजार में, सीकर के शीतला चौक में, खंडेला और मंडावा सहित अनेक जगह पर कायम है।
सांकृत्य गौत्र के गणेश तिवारी का कहना है कि उनके पूर्वज भद्रकाली के उपासक रहे हैं, इसलिए यहां भद्रा का असर नहीं होता। यहां एक किवदंती है कि एक बार उनके पूर्वज शुभकार्य के लिए जा रहे थे, उस समय भद्रा लगा हुआ था। अनेक लोगों ने उन्हें मना किया था कि भद्रा में मत जाओ, लेकिन वह माने नहीं और मातारानी भद्रकाली का नाम लेकर चले गए। संयोग से उनका शुभ कार्य सफल हो गया। इसके बाद से मांगलिक कार्य में भद्रा को नहीं टाला जाता है और लोगों में भद्रा के प्रति आस्था बढ़ गया।
भद्रा में होलिका दहन के समय मातारानी की कृपा से शेखावाटी में नवविवाहिताएं पहली गणगौर अपने पीहर में पूजती है। इसके लिए अधिकतर युवतियां तिवारियों की होलिका दहन से पहले परिक्रमा करती है, इसके बाद गणगौर पूजन करती है। ऐसे में व्रत करने वाली महिलाएं पूजा करने के बाद होलिका की एक झलक देखने आती है और उसके बाद शाम को व्रत खोलती है। इस प्रकार शेखावाटी में तिवारियों की होलीका दहन भद्रा में होता है।
यहां तक शादी, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, जन्मोत्सव सहित अनेक मांगलिक कार्यों में भी भद्रा को नहीं टाला जाता है। भद्रा के समय को यहां के लोग शुभ मानते हैं। इसी परंपरा को निभाते हुए गुरुवार को भद्रा में होलिका दहन किया गया।
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