दुनियां में जल संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है और पेयजल की समस्या भी दिनों-दिन गहराती जा रही है। इसके बावजूद पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति लोग गंभीर नहीं हैं।
संयुक्त राष्ट्र बहुत पहले ही चेतावनी दे चुका है कि 2025 में दुनिया की चौदह प्रतिशत जनसंख्या के लिए जल संकट बड़ी समस्या बन जायेगा। इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर के अनुसार, दुनिया भर में 270 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो पूरे एक वर्ष में तकरीबन तीस दिन तक पानी के संकट का सामना करते हैं।
जल संकट से कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी और जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।
सूत्रों की माने तो यूनिसेफ की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण हालात और खराब हो रही हैं। दुनियां में हर तीन में से एक बच्चा, यानी 73.9 करोड़ पानी की कमी वाले इलाकों में रह रहे हैं। इसके अतिरिक्त, पानी की घटती उपलब्धता, अपर्याप्त पेयजल और स्वच्छता की कमी का बोझ की चुनौतियां बढ़ा रही है।
दुनियां में वैसे 10 देश जहां के बच्चे पर्याप्त पानी से बंचित हैं, उनमें भारत सबसे उपर है। आशंका है कि आने वाले समय में भारत इससे सर्वाधिक प्रभावित देश होगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, शुद्ध पेयजल से जूझने वाली वैश्विक शहरी जनसंख्या 2016 के 93.3 करोड़ से बढ़कर 2050 में 1.7 से 2.4 अरब होने की आशंका है।
केन्द्र और राज्य सरकार घरों में नल के माध्यम से पीने योग्य पानी की आपूर्ति करने की दावा करती हैं, लेकिन आज भी पांच प्रतिशत से अधिक लोग बोतलबंद पानी खरीद रहे हैं।
भारत आठ प्रतिशत वर्षा जल का संचयन कर पाता है। यदि बारिश के पानी का पूर्णतया संचयन कर लिया जाए, तो काफी हद तक जल संकट का समाधान हो सकता है।
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