स्वास्थ्य सेवा किसी भी राज्य की रीढ़ होती है, और बिहार ने इस दिशा में बीते दो दशकों में ऐतिहासिक सुधार दर्ज किए हैं। कभी बदहाल अस्पतालों और दवा की भारी कमी के लिए बदनाम रहा बिहार, आज मुफ्त दवा वितरण नीति की बदौलत देश के अग्रणी राज्यों में गिना जा रहा है।
10 गुना बढ़ा दवा आपूर्ति एवं वितरण का बजट
वर्ष 2005 से पहले बिहार की हालत ऐसी थी कि अस्पतालों में न डॉक्टर मिलते थे, न दवाइयां, और न ही सुविधा। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर वर्ष 2006 से शुरू हुई मुफ्त दवा नीति ने पूरी तस्वीर बदल दी। इस नीति के तहत अब राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को 611 प्रकार की दवाइयां और 132 मेडिकल डिवाइसेज़/कंज्यूमेबल्स मुफ्त में दी जा रही हैं।
सिर्फ पिछले 5 वर्षों में ही इस योजना पर खर्च 10 गुना तक बढ़ाया गया है।
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2024-25: 762 करोड़ रुपये का खर्च
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2025-26: अनुमानित 1100 करोड़ रुपये
हर मरीज को जरूरी दवाएं – मुफ्त में!
अब मरीजों को इलाज के लिए निजी मेडिकल दुकानों की दौड़ नहीं लगानी पड़ती। सरकारी अस्पतालों में ही कैंसर, हृदय रोग, एलर्जी, गठिया, अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों की दवाएं मुफ्त उपलब्ध हैं। इससे गरीब और निम्न आय वर्ग को जबरदस्त राहत मिली है। अब महंगी दवाओं पर निजी खर्च करना अतीत की बात हो गई है।
बिहार डीवीडीएमएस पोर्टल पर देश में नंबर 1
केंद्र सरकार के ड्रग्स एंड वैक्सिन डिस्ट्रीब्यूशन मैनेजमेंट सिस्टम (DVDMS) पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार लगातार पांचवें महीने देश में पहले स्थान पर बना हुआ है। यह राज्य की प्रतिबद्धता और योजनाओं की पारदर्शिता का प्रमाण है।
जनता को सीधे लाभ
बिहार की मुफ्त दवा नीति एक बेहतरीन उदाहरण है कि इच्छाशक्ति, नीति निर्धारण और ईमानदारी से कैसे जनकल्याण के कार्य किए जा सकते हैं। आज राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली मजबूती से खड़ी है और इसकी यह पहल अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बन सकती है।
अगर आप भी बिहार के किसी सरकारी अस्पताल से इलाज करा चुके हैं और आपको मुफ्त दवा मिली है, तो नीचे कमेंट में अपना अनुभव ज़रूर साझा करें!