बुद्ध के पार्थिव अवशेषों से जुड़ी लगभग 1800 दुर्लभ रत्नों की, एक ऐतिहासिक धरोहर को हांगकांग स्थित सोथबीज नीलामी घर में नीलामी के लिए बुधवार को रखी जाएगी।
यह संग्रह पिछले 125 वर्षों से ब्रिटेन के एक निजी संग्रह में सुरक्षित था और अब इसे आधुनिक युग की सबसे अद्भुत और असाधारण पुरातात्विक खोजों में से एक माना जा रहा है।
यह रत्नावली सन 1898 में उत्तर प्रदेश के पिपरहवा (लुंबिनी के पास) स्थित एक स्तूप की खुदाई के दौरान अंग्रेज प्रबंधक विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा खोजी गई थी।
ईटों से बने एक गुप्त कक्ष में हजारों मोती, रूबी, पुखराज, नीलम और सुनहरे पत्रों के साथ-साथ एक कलश में संरक्षित अस्थि-अवशेष भी मिले थे, जिस पर बुद्ध से संबंधित शिलालेख था। इसे लगभग 2000 वर्ष पुराना माना गया है। इन अस्थियों को बाद में थाईलैंड, श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों को सौंप दिया गया, जहां आज भी उन्हें श्रद्धा से पूजा जाता है। वहीं कुछ रत्न और वस्तुएं पेप्पे परिवार के पास रह गई, जिसे अब नीलाम किया जा रहा है।
नीलामी के लिए 1800 से अधिक बहुमूल्य रत्न, जिनमें मोती, रूबी, नीलम, पुखराज शामिल है, वहीं कलात्मक स्वर्णपत्र और स्तूप से प्राप्त अन्य सजावटी धरोहरें, रखी जाएगी।
इन पवित्र धरोहरों की नीलामी को लेकर अनेक प्रश्न खड़े हो रहे हैं। क्या बुद्ध से जुड़ी वस्तुओं को 00 कमोडिटी के तौर पर बेचा जाना उचित है? क्या इसे उपनिवेशवाद की निरंतरता नहीं माना जाना चाहिए? विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा का एक अंश है, जिसकी नीलामी राष्ट्र के अपमान की तरह है। बौद्ध धर्म के अध्ययनकर्ताओं का मत है कि रत्नों को अस्थियों से अलग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इन्हें बुद्ध के अवशेषों के साथ ही पूजा जाता रहा है।
अब तक की प्रमुख घटनाओं के अनुसार, वर्ष 1898 में पिपरहवा में स्तूप की खुदाई हुई थी, वर्ष 1900 में अस्थियां भारतीय संग्रहालय को सौंपी गई, वर्ष 2013 में विलियम पेप्पे की चौथी पीढ़ी को मिली धरोहर, वर्ष 2023 में मेट म्यूजियम, न्यूयॉर्क में लगी प्रदर्शनी और 2025 में सोथबीज में नीलामी की प्रक्रिया चल रही है।
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