इस हमले की गूंज दिल्ली से लेकर वाशिंगटन तक सुनाई दी। फिर शुरू हुआ घटनाओं का सिलसिला—धारदार बयानबाज़ी, सख़्त फैसले, सैन्य कार्रवाई, और अंततः एक नाज़ुक संघर्षविराम।
22 अप्रैल: खूनी सोमवार – पहलगाम की घाटी में लहू की नदी
हमले की जिम्मेदारी एक नया नाम लिए संगठन 'कश्मीर रेजिस्टेंस' ने ली, जिसकी जड़ें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से जुड़ी बताई जा रही हैं।
23 अप्रैल: भारत की तीखी प्रतिक्रिया – राजनयिक तूफ़ान
भारत ने ताबड़तोड़ फैसले लिए:
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पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब किया गया।
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सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार के संकेत दिए गए।
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वीज़ा सेवाएं निलंबित कर दी गईं।
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LOC पर सेना को अलर्ट मोड में रखा गया।
7 मई: ऑपरेशन 'सिंदूर' – भारतीय सेना का जवाब
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IAF ने रात के अंधेरे में 12 जगहों पर सर्जिकल स्ट्राइक की।
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स्पेशल फोर्सेस ने LOC पार जाकर ग्राउंड मिशन को अंजाम दिया।
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आतंकियों की भारी संख्या में मौत की खबरें सामने आईं।
इस कार्रवाई ने भारत को वैश्विक स्तर पर मजबूत रणनीतिक धार दी, लेकिन इसके साथ ही एक और सवाल उठ खड़ा हुआ—अब पाकिस्तान क्या करेगा?
8-9 मई: जवाबी हमले – पाकिस्तान की बौखलाहट
जैसे ही ऑपरेशन सिंदूर की तस्वीरें वायरल हुईं, पाकिस्तान सेना ने प्रतिशोध की मुद्रा अपनाई।
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स्वार्म ड्रोनों से जम्मू और पंजाब के सीमावर्ती इलाकों पर हमले किए गए।
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पाकिस्तानी रेंजर्स ने LOC पर मोर्टार फायरिंग बढ़ा दी।
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लाहौर एयरबेस पर भारतीय वायुसेना ने बड़ी कार्यवाही की जिसमें कई F-16 विमानों को नष्ट करने की बात सामने आई।
एक समय ऐसा लगा कि हालात नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं और परमाणु शक्तियां आमने-सामने आ गई हैं। अमेरिका, रूस और संयुक्त राष्ट्र ने तुरंत मध्यस्थता की पेशकश की।
10 मई: संघर्षविराम – लेकिन भरोसे की डोर कमज़ोर
यानि काग़ज़ पर भले ही युद्ध थमा हो, लेकिन दिलों में और ज़मीनी स्तर पर जंग अब भी बाकी है।
सवाल कई, समाधान अब भी अधूरा
भारत और पाकिस्तान के बीच यह 18 दिन एक बार फिर ये साबित करते हैं कि सीमा पर शांति सिर्फ़ एक दस्तावेज़ का विषय नहीं—यह दोनों देशों के राजनीतिक इरादों और ज़मीन पर फैसलों से जुड़ा मसला है।
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क्या आतंक के खिलाफ मिलकर खड़े हो पाएंगे दोनों देश?
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क्या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कोई स्थायी समाधान दे पाएगी?
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या फिर एक और संघर्षविराम सिर्फ़ अगली जंग की प्रतीक्षा है?