जब भारत में पहली बार टेलीविज़न आया, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एक दिन यह हर घर का हिस्सा बन जाएगा। एक समय था जब मोहल्ले भर के लोग एक टीवी के आगे बैठते थे, और आज हर व्यक्ति के हाथ में एक स्क्रीन है। भारत में टेलीविज़न का विकास सिर्फ तकनीकी प्रगति की नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बदलावों की भी कहानी है।
शुरुआत: जब टीवी केवल विज्ञान था (1959–1975)
भारत में टेलीविज़न का पहला प्रसारण 15 सितंबर 1959 को दिल्ली में हुआ। यह प्रयोगात्मक प्रसारण था जिसे यूनेस्को और अमेरिका की मदद से शुरू किया गया था। उस समय प्रसारण केवल हफ्ते में दो दिन, शाम के दो घंटे हुआ करता था।
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सिर्फ शैक्षिक और कृषि संबंधित कार्यक्रम दिखाए जाते थे।
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कोई मनोरंजन नहीं — केवल ज्ञानवर्धक सामग्री।
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टीवी सेट केवल कुछ स्कूलों और संस्थानों में होते थे।
इस समय टेलीविज़न केवल “भविष्य की चीज़” मानी जाती थी।
दूरदर्शन का युग: जब टीवी पूरे देश का हिस्सा बना (1975–1991)
1976 में दूरदर्शन को आधिकारिक रूप से एक स्वतंत्र संस्था बनाया गया और यही से भारत में टेलीविज़न का असली युग शुरू हुआ।
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1975 में सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट (SITE) हुआ, जिससे गाँवों तक प्रसारण पहुंचा।
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1982 में एशियाई खेलों के साथ भारत में कलर टीवी आया।
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लोग पहली बार रंगीन पर्दे पर क्रिकेट मैच और फिल्में देखने लगे।
यह वह दौर था जब टीवी पर ये कार्यक्रम घर-घर में चर्चा का विषय बनते थे:
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हम लोग (पहला भारतीय धारावाहिक)
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बुनियाद
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रामायण (1987) और महाभारत (1988) — सड़कें सूनी हो जाती थीं जब ये चलते थे।
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चित्रहार, संडे मूवी, डीडी मेट्रो
दूरदर्शन उस समय भारत का अकेला चैनल था, लेकिन यही अकेलापन उसे हर दिल की धड़कन बनाता था।
उदारीकरण और निजी चैनल का धमाका (1991–2000)
1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण हुआ और विदेशी पूंजी के साथ-साथ निजी टेलीविज़न चैनल्स की भी एंट्री हुई।
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Zee TV (1992) पहला प्राइवेट हिंदी एंटरटेनमेंट चैनल बना।
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फिर आए Star Plus, Sony TV, Aaj Tak, NDTV, और ढेरों चैनल्स।
अब:
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हर भाषा के चैनल आने लगे।
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खबरें, म्यूजिक, फिल्में, बच्चों के चैनल — सब कुछ टीवी पर।
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केबल टीवी का जमाना आया — एक छत पर डिश लगी और 50–100 चैनल्स घर बैठे।
इसने टीवी को 'बॉक्स ऑफ ड्रीम्स' बना दिया।
2000s का दशक: रियलिटी, रीमिक्स और रफ्तार
इस दशक में टीवी ने रफ्तार पकड़ ली — कंटेंट भी बदला और दर्शक भी।
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रियलिटी शो का दौर शुरू हुआ: इंडियन आइडल, बिग बॉस, डांस इंडिया डांस।
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सास-बहू सीरियल्स का बोलबाला: कहीं सास, कहीं बहू, कहीं नागिन!
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न्यूज़ चैनलों में चीखने वाली डिबेट्स और ब्रेकिंग न्यूज़ का तूफान आ गया।
यह समय था जब टीवी एक मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि लाइफस्टाइल बन चुका था।
स्मार्ट टीवी और OTT की क्रांति (2010–अब तक)
अब टीवी सिर्फ "चैनल" नहीं दिखाता, अब वो एक इंटरनेट डिवाइस है। स्मार्ट टीवी और OTT प्लेटफॉर्म्स ने टेलीविज़न को पूरी तरह बदल दिया है।
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Netflix, Amazon Prime, Hotstar, Zee5 जैसे प्लेटफॉर्म्स ने लोगों को चैनलों से आज़ादी दी।
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अब दर्शक तय करते हैं — क्या देखना है, कब देखना है, कितनी बार देखना है।
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YouTube और स्मार्टफोन ने टीवी को “जेब में बंद” कर दिया है।
TRP की जगह अब View Count ने ले ली है।
टीवी का असर: संस्कृति से लेकर राजनीति तक
भारत में टीवी केवल मनोरंजन का साधन नहीं रहा, बल्कि इसने:
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चुनावों को प्रभावित किया
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समाज को शिक्षित और भ्रमित दोनों किया
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फैशन, भाषा और विचारधारा को दिशा दी
टीवी ने गांव और शहर के बीच की दूरी को कम किया, लेकिन साथ ही सच और दिखावे के बीच की रेखा भी धुंधली कर दी।
भविष्य क्या है?
टीवी अब एक “बॉक्स” नहीं, एक “स्क्रीन” है — जो इंटरनेट, AI और इंटरएक्टिविटी से संचालित होगी। भारत में आने वाले वर्षों में:
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AI आधारित कंटेंट सुझाव
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इंटरएक्टिव टीवी शोज़
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वॉयस कंट्रोल्ड स्मार्ट टीवी
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और 3D वर्चुअल अनुभव आम हो जाएंगे।
भारत में टीवी का सफर — एक बदलाव की कहानी
1959 का ब्लैक एंड व्हाइट प्रसारण से लेकर आज के 4K स्ट्रीमिंग तक, भारत में टेलीविज़न का सफर केवल तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि एक समाज के जागने और बदलने की कहानी है।
टीवी ने हमें हँसाया, रुलाया, सिखाया, उलझाया — और अब भी बदल रहा है, हमारे साथ-साथ।