अमेरिका से चीन की ओर वैश्विक शक्ति का झुकाव

Jitendra Kumar Sinha
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दुनिया बदल रही है। कभी अमेरिका को वैश्विक शक्ति का निर्विवाद केंद्र माना जाता था — सैन्य, आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक हर मोर्चे पर उसकी पकड़ थी। लेकिन अब बीसवीं सदी की यह सच्चाई इक्कीसवीं सदी में धीरे-धीरे बदलती नज़र आ रही है। चीन अब सिर्फ एक “निर्माण फैक्ट्री” नहीं रहा, बल्कि वह वैश्विक शक्ति केंद्र बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर है।




आर्थिक ताक़त का केंद्र: अब एशिया की ओर

चीन ने 1978 में जब से आर्थिक सुधार और खुले बाज़ार की नीति अपनाई, तब से उसकी रफ्तार थमी नहीं। आज चीन:

  • दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है (GDP के हिसाब से),

  • विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है,

  • और दुनिया का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखता है।

"मेड इन चाइना" अब केवल सस्ते सामानों का प्रतीक नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी, 5G, इलेक्ट्रिक व्हीकल, ग्रीन एनर्जी और AI जैसे क्षेत्रों में भी छा रहा है।

उदाहरण: हुवावे, अलीबाबा, बैदू, बीवायडी और शाओमी जैसी कंपनियाँ अब अमेरिकी टेक दिग्गजों को सीधी टक्कर दे रही हैं।




बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): चीन का नया साम्राज्यवादी मॉडल?

अमेरिका जहां पारंपरिक सैन्य गठबंधनों और डिप्लोमैसी के ज़रिए अपना प्रभाव फैलाता था, वहीं चीन ने आर्थिक निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर के ज़रिए नई दुनिया बनाई है।

BRI यानी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन ने 150 से ज़्यादा देशों में बंदरगाह, सड़कें, रेलवे, एयरपोर्ट और पावर प्रोजेक्ट बना दिए हैं।

यह रणनीति सिर्फ आर्थिक नहीं, भू-राजनीतिक चाल भी है — "पैसे दो, दोस्त बनाओ" की नीति।




अमेरिका की गिरती पकड़: आंतरिक राजनीति और वैश्विक थकान

अमेरिका के पतन के कई संकेत अब खुलकर दिखने लगे हैं:

  • लगातार आंतरिक ध्रुवीकरण: नस्लीय तनाव, गोलीबारी की घटनाएं, रिपब्लिकन बनाम डेमोक्रेट्स की चरम राजनीति

  • अफगानिस्तान से वापसी जैसी विफल विदेश नीति

  • डॉलर पर बढ़ता संदेह और डेड क्राइसिस

  • यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की अप्रत्यक्ष भूमिका पर भी सवाल उठे हैं

दुनिया अब पूछ रही है — क्या अमेरिका भरोसेमंद नेता है?




सैन्य शक्ति: चीन की मूक क्रांति

जहां अमेरिका की सैन्य शक्ति आज भी भारी है, वहीं चीन ने "सॉफ्ट पावर" और "शार्प पावर" दोनों में बड़ा निवेश किया है:

  • PLA (People's Liberation Army) अब दुनिया की सबसे बड़ी सेना है।

  • चीन ने AI आधारित युद्ध तकनीक, साइबर सेना, और हाइपरसोनिक मिसाइलों में बहुत निवेश किया है।

  • चीन का दक्षिण चीन सागर में प्रभुत्व बढ़ाना और ताइवान पर दावा इसका उदाहरण है।

चीन अब पारंपरिक युद्ध नहीं, प्रभाव का युद्ध लड़ रहा है — तकनीक, डेटा, और भू-रणनीति के माध्यम से।




डिजिटल ताक़त और टेक्नोलॉजी में प्रभुत्व

जहां अमेरिका Facebook, Google और Apple जैसी कंपनियों के सहारे दुनिया में छाया था, वहीं चीन की नई पीढ़ी की टेक कंपनियाँ वैश्विक बाजार पर कब्जा कर रही हैं:

  • हुवावे ने 5G में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया

  • TikTok अमेरिका के युवाओं पर साइकोलॉजिकल प्रभाव का बड़ा उदाहरण बना

  • अलीबाबा और टेनसेंट अब ग्लोबल फिनटेक में लीडर हैं

इसके अलावा, डिजिटल युआन यानी चीन की अपनी डिजिटल करेंसी ने डॉलर की बादशाहत को खुली चुनौती दी है।




सांस्कृतिक प्रभाव: सिनेमा से लेकर शिक्षा तक

जहां एक समय था जब हॉलीवुड और अंग्रेज़ी भाषा दुनिया के मन-मस्तिष्क पर राज करते थे, अब चीन अपने कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट, मंडारिन भाषा और एशियाई सौंदर्य को प्रचारित कर रहा है।

चीन का सिनेमा, वेब सीरीज़, गेमिंग इंडस्ट्री भी अब वैश्विक मंच पर दस्तक दे रही है।




भारत कहाँ खड़ा है?

भारत इस शक्ति परिवर्तन में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है:

  • अमेरिका चाहता है कि भारत उसके साथ रहे (QUAD, I2U2 जैसी रणनीति)

  • चीन भारत को एक प्रतियोगी मानता है, खासकर एशिया में

भारत को इस बदलते परिदृश्य में स्वतंत्र और चतुर नीति अपनानी होगी — ना पूरी तरह अमेरिका के साथ, ना चीन के अधीन।

"बहुध्रुवीय विश्व" भारत के लिए सबसे अनुकूल स्थिति हो सकती है।




क्या चीन नया अमेरिका बन जाएगा?

शक्ति का संतुलन धीरे-धीरे खिसक रहा है। अमेरिका की पकड़ ढीली पड़ रही है और चीन चुपचाप, मगर मज़बूती से अपनी स्थिति बना रहा है।

हालाँकि अभी भी अमेरिका कई क्षेत्रों में चीन से आगे है — सैन्य गठबंधन, लोकतांत्रिक साख और नवाचार की संस्कृति में। लेकिन जिस तरह "सदी का बीजिंग मॉडल" उभर रहा है, वह बताता है कि शक्ति अब पश्चिम से पूरब की ओर बढ़ रही है।

हो सकता है अगली सदी का प्रश्न ये ना हो कि “अमेरिका क्या करेगा?” — बल्कि ये हो: “चीन क्या सोचता है?”


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