केरल में 270 वर्षों बाद हुआ महाकुंभाभिषेकम

Jitendra Kumar Sinha
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केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित विश्वविख्यात श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में रविवार को एक ऐसा अनुष्ठान सम्पन्न हुआ, जिसका इंतजार पिछले 270 वर्षों से किया जा रहा था। यह दुर्लभ महाकुंभाभिषेकम सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और सनातन संस्कृति का प्रतीक बन गया है।

महाकुंभाभिषेकम एक वैदिक अनुष्ठान है जो मंदिर के गर्भगृह, मूर्ति और समस्त परिसर की आध्यात्मिक शुद्धि तथा ऊर्जा संचार हेतु किया जाता है। यह विशेष पूजा विधि केवल तभी किया जाता है जब मंदिर में बड़े स्तर पर पुनर्निर्माण, जीर्णोद्धार या नवीनीकरण हुआ हो, या फिर अत्यंत विशिष्ट खगोलीय संयोग बना हों। यह प्रक्रिया कई दिनों तक चलता है और अंत में देवी-देवताओं पर पवित्र जल, पंचामृत और विशेष जड़ी-बूटियों से युक्त अभिषेक किया जाता है।

इस ऐतिहासिक अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर परिसर में उपस्थित रहे। चूंकि मंदिर का गर्भगृह केवल सीमित लोगों के लिए खुला रहता है, इसलिए चारों प्रवेश द्वारों पर विशाल एलईडी स्क्रीन लगाए गए थे, जिससे श्रद्धालु इस दिव्य क्षण के साक्षी बन सके। मंदिर के पुजारियों ने बताया कि आने वाले कई दशकों तक यह अनुष्ठान दोबारा नहीं होगा, जिससे इसकी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता और भी बढ़ गई है।

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर न केवल भारत, बल्कि दुनिया के सबसे समृद्ध और रहस्यमयी मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा किया गया था और भगवान विष्णु के ‘अनंतशयन’ स्वरूप को समर्पित यह मंदिर वास्तुकला और आध्यात्मिकता का अद्भुत उदाहरण है। यहां की परंपराएं अत्यंत प्राचीन हैं और मंदिर प्रशासन आज भी त्रावणकोर राजघराने के आदेशों का पालन करता है। यही कारण है कि जब महाकुंभाभिषेकम जैसे अनुष्ठान होते हैं, तो उसका आयोजन पूरी वैदिक विधियों और परंपराओं के अनुसार होता है।

इस आयोजन के बाद भक्तों ने इसे अपनी आध्यात्मिक यात्रा का अत्यंत दुर्लभ और पुण्य अवसर बताया। बहुत से श्रद्धालु दूर-दराज से सिर्फ इस एक झलक को देखने आए थे। इस दौरान मंदिर परिसर को भव्य रूप से सजाया गया था, मंत्रोच्चार, वेदपाठ और भजन-कीर्तन की गूंज से समूचा वातावरण शुद्ध और पावन हो गया था।

270 वर्षों बाद सम्पन्न यह महाकुंभाभिषेकम निश्चित ही आने वाले पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत और आध्यात्मिक धरोहर बन गया है। यह आयोजन न केवल भक्तों की श्रद्धा को और गहराई देता है, बल्कि सनातन परंपरा की शक्ति और निरंतरता को भी प्रमाणित करता है।



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