भगवान जगन्नाथ जी ने वीर हनुमान को, पुरी की सुरक्षा के लिए, बेड़ियों से बाँधना पड़ा

Jitendra Kumar Sinha
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भारत की पावन धरती विविध आध्यात्मिक और रहस्यमयी कथाओं से भरी हुई है। इन्हीं में से एक अत्यंत प्रेरक, चमत्कारी और अलौकिक कथा है “पुरी के बेड़ी हनुमान जी”। पुरी, जिसे सप्तपुरियों में स्थान प्राप्त है, और जिसे जगन्नाथ धाम के रूप में सम्पूर्ण विश्व में ख्याति प्राप्त है, वह सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण के रूप जगन्नाथ जी के कारण प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि इस पावन भूमि के एक अत्यंत रहस्यमयी पहलू का सम्बन्ध हनुमान जी से भी है। यह कथा उस समय की है जब समुद्र की उद्दंडता से त्रस्त होकर भगवान जगन्नाथ जी ने वीर हनुमान को पुरी की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया था। परंतु उनके अति भक्तिभाव के कारण उन्हें स्वर्ण बेड़ियों से बाँधना पड़ा।

पुरी, ओडिशा राज्य का एक ऐतिहासिक नगर, चार धामों में से एक है बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पुरी।
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण, बलराम (बलभद्र) और सुभद्रा जी की संयुक्त पूजा होता है। हर वर्ष होने वाली रथ यात्रा विश्वप्रसिद्ध है, जिसमें लाखों भक्त भाग लेते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता है कि पुरी की सुरक्षा और संतुलन का भार रामभक्त हनुमान जी के कंधों पर है।

लोककथाओं के अनुसार, जब राजा इन्द्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ जी का भव्य मंदिर बनवाया था, तब समुद्र की लहरें कई बार उठी और मंदिर की दीवारों को नष्ट कर दिया था। तीन बार यह त्रासदी हुई, जिससे समस्त नगरवासी भयभीत हो गए। राजा ने तपस्या की, और तब भगवान जगन्नाथ जी ने आदेश दिया कि “पुरी की रक्षा अब हनुमान करेगा। वह समुद्र को नियंत्रित करेगा।” यह आदेश प्राप्त होते ही हनुमान जी को पुरी की नगर सीमा पर नियुक्त किया गया।

हनुमान जी एक ऐसे भक्त हैं जो राम जी या उनके किसी भी रूप के बिना, क्षणभर भी नहीं रह सकते हैं। जगन्नाथ जी को भगवान राम जी का ही स्वरूप मानकर हनुमान जी, बार-बार मंदिर में प्रवेश कर दर्शन करने लगते थे। कहते हैं कि जब-जब हनुमान जी मंदिर में प्रवेश करते थे, समुद्र भी उनकी भक्ति से प्रभावित होकर पीछे-पीछे नगर में घुस आता था। इससे पुरी नगर को बार-बार बाढ़ का सामना करना पड़ता था।

जगन्नाथ जी ने देखा कि हनुमान जी की भक्ति अमूल्य है, परंतु उनकी यह गति, पुरी नगर के लिए संकट बन रहा है। तब उन्होंने प्रेमपूर्वक एक उपाय निकाला। उन्होंने हनुमान जी को स्वर्ण बेड़ियों से बाँध दिया। यह बेड़ियाँ प्रतीकात्मक थीं, न तो वह कठोर कारावास था, न ही किसी सजा का रूप, बल्कि एक ईश्वरीय संकेत था कि अब हनुमान जी को पुरी की सीमाओं में ही रहकर नगर की रक्षा करनी है।

पुरी में बेड़ी हनुमान जी का मुख्य मंदिर समुद्र तट की दिशा में स्थित है। यह एक छोटा-सा, किंतु अत्यंत ऊर्जा-सम्पन्न मंदिर है, जहाँ हनुमान जी को स्वर्ण बेड़ियों से बँधा हुआ माना जाता है। बेड़ी हनुमान मंदिर की विशेषता है कि मंदिर समुद्र के अत्यंत समीप स्थित है। यहाँ हनुमान जी की मूर्ति को लोहे की बेड़ियों से सजाया गया है, जो स्वर्ण बेड़ियों का प्रतीक है। भक्तगण यहाँ विशेष रूप से संकट से मुक्ति, समुद्री आपदाओं से बचाव और मानसिक शांति के लिए दर्शन करते हैं। यह मंदिर सभी चारों दिशाओं में स्थित हनुमान चौकियों में मुख्य द्वार के निकटस्थ है।

पुरी के स्थानीय पुरोहित, भक्तजन और लोकगीतों में इस कथा की विभिन्न छवियाँ मिलता हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि “जिस दिन हनुमान जी अपनी बेड़ियाँ तोड़ देंगे, उस दिन समुद्र, पुरी को निगल जाएगा।” यह धारणा इस बात को रेखांकित करता है कि पुरी की रक्षा हनुमान जी के ही हाथों में है।

मान्यता है कि बेड़ी हनुमान जी संकट से मुक्ति दिलाते हैं। मानसिक शांति के लिए उनके दर्शन अत्यंत प्रभावशाली माना जाता हैं। समुद्र की लहरें यहाँ एक अद्भुत संतुलन बनाए रखती हैं, यह भी एक चमत्कार माना जाता है। हनुमान जयंती, अमावस्या और रथयात्रा के समय यहां विशेष पूजा-अर्चना होता है। नवविवाहित जोड़े, बच्चे और वृद्धजन इस मंदिर में विशेष श्रद्धा से आते हैं।

पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान जी की चौकियाँ स्थापित हैं। यह चौकियाँ इस बात का संकेत हैं कि पुरी नगरी की रक्षा हनुमान जी चारों दिशाओं से कर रहे हैं। इनमें से मुख्य द्वार के समीप स्थित बेड़ी हनुमान की चौकी सबसे विशिष्ट माना जाता है।

जो भी साधक बेड़ी हनुमान मंदिर में प्रवेश करता है, वह एक अनूठी ऊर्जा और शांतिपूर्ण वातावरण का अनुभव करता है। समुद्र की लहरों की आवाज, मंद पवन, और हनुमान जी की मूर्ति से निकलती शक्ति, यह सब मिलकर एक तपस्वी केंद्र का आभास कराता हैं।

बेड़ी हनुमान जी की कथा हमें तीन महत्वपूर्ण संदेश देती है- भक्ति और मर्यादा का संतुलन जरूरी है हनुमान जी की भक्ति अपार थी, लेकिन जगन्नाथ जी ने उन्हें मर्यादा में रहना सिखाया। सत्ता का दुरुपयोग नहीं, दायित्व होना चाहिए हनुमान जी शक्ति के पुंज हैं, लेकिन उन्होंने इसे सेवा में लगाया। और प्रेम से ही अनुशासन स्थिर होता है, स्वर्ण बेड़ियाँ न बंधन थी, न दंड,  वह एक प्रेम का संकेत था, जो जगन्नाथ जी ने अपने परम भक्त को दिया।

हनुमान जी को बांधना, असंभव है, परंतु जब यह बंधन ईश्वर द्वारा दिया गया हो, और उसका उद्देश्य लोक कल्याण हो, तब यह बंधन नहीं, बल्कि आशीर्वाद बन जाता है। पुरी के बेड़ी हनुमान जी इस बात का जीवंत उदाहरण हैं कि एक सच्चा भक्त, अपनी शक्ति को मर्यादा में रखकर, सृष्टि की रक्षा कर सकता है। हनुमान जी आज भी पुरी के प्रहरी हैं, और जब तक स्वर्ण बेड़ियाँ उन्हें थामे रखेगी, समुद्र कभी पुरी पर हावी नहीं होगा।



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