पश्चिम बंगाल में ओबीसी सूची पर - हाईकोर्ट की रोक - आरक्षण पर हुआ सियासी संग्राम तेज

Jitendra Kumar Sinha
0



पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की नई सूची को लेकर जारी अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगा दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने जाति प्रमाणपत्र जमा कराने के लिए खोले गए पोर्टल की प्रक्रिया पर भी फिलहाल रोक लगाने का आदेश दिया है।

राज्य सरकार ने हाल ही में एक अधिसूचना जारी कर ओबीसी की नई सूची तैयार की थी। इस अधिसूचना में कुछ ऐसी जातियों को फिर से शामिल किया गया था, जिनका आरक्षण पहले न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था। इस पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति जताई थी और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में दावा किया गया कि यह कदम संविधान और न्यायिक आदेशों के खिलाफ है।

कलकत्ता हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस राजशेखर मंथा और जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती शामिल हैं, ने राज्य सरकार की अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगाते हुए अगली सुनवाई की तारीख 31 जुलाई 2025 तय किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब तक इस मामले में विस्तृत सुनवाई नहीं हो जाता है, तब तक जातीय प्रमाणपत्रों के लिए पोर्टल खोलने और नई सूची को लागू करने की कोई प्रक्रिया नहीं किया जा सकता है।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य सरकार ने वोट बैंक की राजनीति के तहत कुछ जातियों को दोबारा ओबीसी सूची में शामिल किया है, जबकि पहले उन्हें अदालत द्वारा आरक्षण के अयोग्य करार दिया गया था। इससे न केवल संविधान का उल्लंघन होता है, बल्कि उन वर्गों के साथ भी अन्याय होता है, जो वास्तव में आरक्षण के हकदार हैं।

पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने पक्ष में दलील दी है कि नई सूची सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की भावना के तहत तैयार की गई है। सरकार ने यह भी तर्क दिया है कि जातियों की वर्तमान सामाजिक-आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन कर उन्हें ओबीसी सूची में शामिल किया गया है। हालांकि कोर्ट ने इस तर्क को अंतिम निर्णय तक अस्वीकार कर दिया है।

इस फैसले ने बंगाल की राजनीति में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। विपक्षी दलों ने सरकार पर "जातिवादी राजनीति" करने का आरोप लगाया है। भाजपा नेताओं ने इस निर्णय को जनता की जीत बताया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि वह सामाजिक न्याय की लड़ाई जारी रखेगी।

कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल ओबीसी आरक्षण व्यवस्था को लेकर एक बड़ा संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वोट बैंक के लिए सामाजिक ताने-बाने से खिलवाड़ न्यायपालिका के रडार पर है। अब 31 जुलाई की अगली सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी रहेगी, जब यह तय होगा कि बंगाल की नई ओबीसी सूची की वैधता कायम रह पाएगी या नहीं।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top