राजनीतिक गलियारों में इन दिनों एक नया विवाद तूल पकड़ रहा है। डॉ. भीमराव आंबेडकर की तस्वीर के कथित अपमान को लेकर राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को नोटिस जारी किया है। आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 15 दिनों के अंदर स्पष्टीकरण देने को कहा है। यदि समय सीमा के भीतर जवाब नहीं मिलता है, तो उनके खिलाफ एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
13 जून को जारी किए गए इस नोटिस में उल्लेख किया गया है कि सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें लालू प्रसाद अपने जन्मदिन के अवसर पर एक कार्यकर्ता के साथ नजर आ रहे हैं। वीडियो में कथित तौर पर डॉ. आंबेडकर की तस्वीर के प्रति असम्मानजनक व्यवहार किया गया है। इस पर राज्य अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष देवेंद्र कुमार ने संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है।
नोटिस में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह मामला अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सम्मान से जुड़ा हुआ है। आयोग ने चेतावनी दी है कि अगर निर्धारित समय सीमा में लालू प्रसाद की ओर से संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जाता है, तो इसे जानबूझकर किया गया अपमान माना जाएगा और भारतीय दंड संहिता की संगत धाराओं के साथ-साथ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाएगा।
इस मुद्दे ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। राजद की ओर से अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, पार्टी इसे राजनीतिक साजिश बता सकती है। दूसरी ओर, विपक्षी दल इस मामले को लेकर आक्रामक हो गए हैं और दलित समाज के सम्मान के सवाल पर सरकार और प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
राज्य अनुसूचित जाति आयोग का यह कड़ा रुख बताता है कि दलित समुदाय के प्रतीकों और महापुरुषों के सम्मान के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। आयोग ने वीडियो की जांच के लिए एक आंतरिक समिति भी गठित की है जो तथ्यों की पुष्टि करेगी।
अब सबकी नजरें लालू प्रसाद यादव के जवाब पर टिकी हैं। क्या वे आरोपों को नकारेंगे या माफी मांगेंगे? क्या यह मामला और बड़ा रूप लेगा? आने वाले दिनों में इस विवाद का राजनीतिक असर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।