अमरीका के बाद अब कनाडा में भी अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों के लिए मुश्किलें तेजी से बढ़ रही हैं। कनाडा बॉर्डर सर्विस एजेंसी (CBSA) ने देश में रह रहे उन प्रवासियों के खिलाफ बड़ा डिपोर्टेशन अभियान शुरू किया है, जिनका वीजा समाप्त हो चुका है या जिनकी शरण याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं। एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 30,000 से ज्यादा लोगों के खिलाफ डिपोर्ट वारंट जारी कर दिया गया हैं।
डिपोर्टेशन की इस प्रक्रिया में मुख्यतः वे लोग शामिल हैं जिनका वीजा या वर्क परमिट समाप्त हो चुका है। जिन्होंने शरण याचिका (Asylum) दायर की थी, लेकिन वह खारिज हो गया है। जो लोग गिरफ्तारी या पूछताछ से बचने के लिए भूमिगत हो गए हैं। कनाडा सरकार का कहना है कि अवैध प्रवास न सिर्फ संसाधनों पर बोझ बढ़ाता है, बल्कि इससे सामाजिक और कानूनी असंतुलन भी उत्पन्न होता है।
CBSA द्वारा जारी किए गए 30,000 से अधिक डिपोर्टेशन वारंट इस बात की ओर संकेत करता हैं कि आने वाले समय में कनाडा में बड़े पैमाने पर निष्कासन की प्रक्रिया देखने को मिल सकता है। यह संख्या इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि कनाडा आमतौर पर शरणार्थियों और प्रवासियों के लिए सहानुभूतिपूर्ण नीति अपनाता रहा है। लेकिन अब सुरक्षा, संसाधनों और सार्वजनिक भावना को देखते हुए सरकार ने सख्ती का रुख अपनाया है।
इस डिपोर्टेशन की कार्रवाई का असर केवल कनाडा तक सीमित नहीं रहेगा। कई देशों के नागरिक, खासकर दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी देशों से आए प्रवासी इसमें प्रभावित हो सकते हैं। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नाइजीरिया जैसे देशों के नागरिकों को सबसे अधिक लौटाया जा सकता है। यह सख्ती अमरीका में पहले से चल रही डिपोर्टेशन नीति के अनुरूप ही है, जिससे अमेरिका-कनाडा की समन्वय रणनीति का भी संकेत मिलता है।
कनाडा सरकार इस कार्रवाई को ‘कानून के पालन’ का हिस्सा बता रही है, वहीं मानवाधिकार संगठनों ने इसे मानवीय संकट बताया है। उनका कहना है कि कई प्रवासी वर्षों से कनाडा में बसे हैं और वहां उनका परिवार, काम कर रहे हैं और जीवन जी रहे है। अचानक निष्कासन से कई लोगों की जिन्दगी बिखर सकती है। सरकार का जवाब है कि जिन लोगों को निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई है, उन्हें पहले ही नोटिस, सुनवाई और अपील का मौके दिया जा चुका हैं।
कनाडा में चल रही यह बड़ी कार्रवाई स्पष्ट संकेत दे रहा है कि अब अवैध प्रवासियों के लिए कोई सहूलियत नहीं रहने वाली है। चाहे अमेरिका हो या कनाडा, दोनों ही देश अब ‘नो टॉलरेंस’ नीति की ओर बढ़ रहा हैं।