बिहार सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने राज्य की समृद्ध जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए एक सराहनीय और ऐतिहासिक कदम उठाया है। इस पहल के अंतर्गत राज्य के पांच जिला- बक्सर, औरंगाबाद, मुंगेर, जमुई और भागलपुर में कुल 32 वृक्षों को 'विरासत वृक्ष' (Heritage Trees) के रूप में चयनित किया गया है। यह चयन न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है।
इन चयनित विरासत वृक्षों में सबसे अधिक चर्चा का विषय औरंगाबाद जिला के मदनपुर प्रखंड की दक्षिणी उमगा पंचायत में स्थित एक विशालकाय बरगद का वृक्ष बना हुआ है। इसकी अनुमानित आयु लगभग 500 वर्ष बताया जा रहा है। यह वृक्ष केवल अपने विशाल आकार और छांव के लिए ही नहीं, बल्कि स्थानीय समुदाय से इसके गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव के कारण भी विशिष्ट माना जाता है। लोककथाओं, धार्मिक आयोजनों और सामाजिक मान्यताओं में इस वृक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
बिहार जैव विविधता पर्षद द्वारा संचालित इस प्रक्रिया में पहले चरण में राज्यभर से करीब 1500 पुराने वृक्षों की पहचान की गई। इसके बाद इन वृक्षों का सघन भौतिक सत्यापन किया गया और विभिन्न मापदंडों के आधार पर 32 वृक्षों को अंतिम रूप से विरासत वृक्ष के रूप में चयनित किया गया। चयन के मुख्य मानक था- वृक्ष की आयु (कम से कम तीन पीढ़ियों से अधिक, यानि लगभग 100 वर्ष या उससे ज्यादा), ऐतिहासिक या पौराणिक महत्व, दुर्लभ या संकटापन्न प्रजाति होना,वैज्ञानिक शोध के लिहाज से विशिष्टता।
चयनित 32 वृक्षों में प्रजातियों की दृष्टि से भी विविधता दिखाई देती है, जो सम्मलित है वह है बरगद- 12, पीपल- 6, पाकड़- 3, महुआ- 2, नीम- 2, खिरनी, सेमल, गुलर, इमली, कल्पवृक्ष और कनक चम्पा- प्रत्येक 1 वृक्ष। इनमें 28 वृक्षों की आयु 100 वर्ष से अधिक आंकी गई है, जबकि शेष 4 वृक्षों की आयु 70 से 90 वर्ष के बीच है।
'विरासत वृक्ष' योजना न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देती है, बल्कि ग्रामीण और शहरी समुदायों के बीच प्राकृतिक धरोहरों के प्रति जागरूकता भी फैलाती है। इन वृक्षों को विशेष पहचान देने के साथ-साथ इनके संरक्षण के लिए स्थानीय प्रशासन और वन विभाग को निर्देश जारी किया गया हैं। प्रत्येक वृक्ष के आसपास सुरक्षा घेरे, सूचनात्मक बोर्ड और संरक्षण उपाय सुनिश्चित किया जाएगा।