बिहार में स्थानीय निकाय चुनावों की सरगर्मी के बीच आठ नगर निकायों में एक अनोखी स्थिति देखने को मिली है, जहां वार्ड पार्षद निर्विरोध चुने गए हैं। आम तौर पर जहां चुनावों में कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है, वहीं इन आठ स्थानों पर प्रत्याशियों के खिलाफ कोई नामांकन दाखिल नहीं हुआ। परिणामस्वरूप, संबंधित प्रत्याशियों की जीत बिना मतदान के ही तय हो गई।
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, बिहार के छह नगर निकायों में आम चुनाव और 51 नगर निकायों में उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया गया हैं। इसी प्रक्रिया के दौरान यह खुलासा हुआ कि आठ वार्डों में केवल एक-एक प्रत्याशी ही मैदान में हैं, जिससे उनकी निर्विरोध जीत तय हो गई।
अरवल जिले के कुर्था नगर पंचायत के वार्ड संख्या 8, जहानाबाद जिले के मखदुमपुर नगर पंचायत के वार्ड संख्या 1, हाजीपुर नगर परिषद के वार्ड संख्या 5, गया जिले के टेकारी नगर पंचायत के वार्ड संख्या 20, मोतिहारी नगर निगम के वार्ड संख्या 6, बेगूसराय नगर निगम के वार्ड संख्या 10 और समस्तीपुर नगर निगम के वार्ड संख्या 43 में निकायों में मिली है निर्विरोध जीत। इन सभी स्थानों पर केवल एक ही प्रत्याशी द्वारा नामांकन दाखिल किया गया था, जिसके कारण निर्वाचन आयोग ने उन्हें निर्विरोध विजयी घोषित कर दिया है।
निर्विरोध चुनाव जीतने की स्थिति को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों के बीच मतभेद है। कुछ इसे स्थानीय स्तर पर प्रत्याशी की लोकप्रियता और सामाजिक स्वीकार्यता का प्रमाण मानते हैं, जबकि कुछ इसे चुनावी जागरूकता और लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा की कमी का संकेत भी मानते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति कई बार सामाजिक समरसता और सर्वसम्मति का परिणाम हो सकता है, लेकिन यह भी जरूरी है कि मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने और विकल्पों को लेकर जागरूक किया जाए।
चूंकि नगर निकाय चुनाव में अधिकांश प्रत्याशी निर्दलीय होते हैं, राजनीतिक दलों की सीधी भागीदारी कम होती है। फिर भी स्थानीय नेताओं ने इन निर्विरोध विजयी पार्षदों को बधाइयां दी हैं और आशा जताई है कि वे जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे।
बिहार के नगर निकाय चुनावों में यह घटना लोकतंत्र के उस पहलू को सामने लाती है, जहां सामाजिक सहमति या राजनीतिक प्रभाव के कारण प्रत्याशी बिना किसी मुकाबले विजयी घोषित होते हैं। ऐसे मामलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना आवश्यक होता है ताकि जनता का विश्वास लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बना रहे। निर्विरोध चुने गए इन पार्षदों के लिए अब असली चुनौती अपने क्षेत्र की जनता की सेवा करना और विकास कार्यों को गति देना है।