पुराने जख्मों को फिर कुरेद गया अहमदाबाद हादसा

Jitendra Kumar Sinha
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आधुनिक तकनीक, उन्नत विमानों और एयर ट्रैफिक कंट्रोल की मौजूदगी के बावजूद भारत में समय-समय पर विमान दुर्घटनाएं होती रही हैं। अहमदाबाद में हाल ही में हुए विमान हादसा न सिर्फ दुखद था, बल्कि इसने एक बार फिर उन पुराने जख्मों को हरा कर दिया है, जिनमें सैकड़ों लोगों की जानें गई थी। हर बार हादसे के बाद जांच होती है, रिपोर्ट आती है, सुधार की बात होती है, पर समय के साथ वह रिपोर्टें सिर्फ रिपोर्ट बनकर रह जाता है। 

अहमदाबाद हादसा अपने आप में बेहद डरावना था, इसमें विमान लैंडिंग से पहले ही तकनीकी कारणों से असंतुलित हो गया और रनवे के ऊपर से फिसलते हुए क्षेत्र में घुस गया। कई लोग घायल हुए और हड़कंप मच गया। यह दृश्य एक बार फिर पटना, कोझीकोड, मंगलूरू, और चरखी दादरी जैसे हादसों की याद दिला, जब लोगों ने अपनों को खोया था और सवाल उठा था,  क्या विमान उड़ाने वाले, विमान रखने वाले और उनकी निगरानी करने वाले, सभी जागरूक हैं?

एयर इंडिया एक्सप्रेस फ्लाइट IX-1344 (7 अगस्त 2020, कोझीकोड, केरल) विमान हादसा में मृतक की संख्या 21 था। यह हादसा टेबलटॉप रनवे पर भारी बारिश के दौरान फिसलकर खाई में गिरा था विमान। वंदे भारत मिशन के तहत दुबई से लौट रही फ्लाइट थी। रनवे से फिसलना और संरचनात्मक कमजोरियाँ हादसे का कारण बनीं थी।

एयर इंडिया एक्सप्रेस फ्लाइट IX-812 (22 मई 2010, मंगलूरू, कर्नाटक) विमान हादसा में मृतक की संख्या 158 था। यह हादसा दुबई से आ रही फ्लाइट टेबलटॉप रनवे पर उतरने में असफल रही और खाई में गिर गई। एक भयंकर आग ने विमान को निगल लिया। केवल 8 लोग बच सके थे।

एलायंस एयर फ्लाइट 7412 (1999, पटना, बिहार) विमान हादसा में मृतक की संख्या  60 (5 जमीन पर) था। यह हादसा लैंडिंग के दौरान नियंत्रण खो बैठी फ्लाइट रिहायशी इलाके पर गिरा था। इसके बाद पायलट प्रशिक्षण और एटीसी के बीच समन्वय को लेकर कई सवाल उठे थे।

चरखी दादरी हादसा (12 नवंबर 1996, हरियाणा) विमान हादसा में मृतक की संख्या 349 (दुनिया का सबसे बड़ा मिड-एयर कोलिजन) था। यह हादसा इंडियन एयरलाइंस और कजाखिस्तान एयरलाइंस के दो विमान हवा में टकरा गए थे। रेडियो संचार में चूक, ऊंचाई का गलत आकलन और भाषा की बाधा इसका कारण बना था।

इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट 605 (14 फरवरी 1990, बेंगलुरु) विमान हादसा में मृतक की संख्य 92 था। यह हादसा एयरबस A320 लैंडिंग के दौरान रनवे तक नहीं पहुंच सका था और दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। लैंडिंग प्रक्रिया और सिम्युलेटर प्रशिक्षण की गंभीर कमियां उजागर हुईं थी।

इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट 113 (19 अक्टूबर 1988, अहमदाबाद, गुजरात) विमान हादसा में मृतक की संख्या133 था। यह हादसा कम दृश्यता में लैंडिंग की कोशिश में विमान रनवे तक नहीं पहुंच पाया और दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। केवल दो लोग बच सके थे।

एयर इंडिया फ्लाइट 855 (1 जनवरी 1978, मुंबई के पास) विमान हादसा में मृतक की संख्या  213 था। यह हादसा टेकऑफ के तुरंत बाद विमान समुद्र में जा गिरा था। उपकरण की खराबी और पायलट भ्रम हादसे का कारण बना था।

भारत में अभी भी कई पायलट प्रशिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता की भारी कमी लगता है। फ्लाइट सिम्युलेटर की संख्या कम है और असली हालात में निर्णय लेने की क्षमता सीमित रह जाती है। भारत के कई एयरपोर्ट अभी भी पुराने ढांचे पर आधारित हैं। टेबलटॉप रनवे (मंगलूरू, कोझीकोड) खतरनाक साबित हो चुका हैं। इनमें थोड़ी भी चूक बड़ा हादसा बन जाता है। हवा में उड़ते विमानों को नियंत्रित करने वाला ATC कई बार स्टाफ की कमी, तकनीकी खामियों और निर्णय की धीमी प्रक्रिया से जूझता है। भारतीय हवाई अड्डों पर कई जगह मौसम का सटीक पूर्वानुमान देने वाले उपकरण नहीं हैं। कई एयरपोर्ट पर ILS (Instrument Landing System) की अनुपलब्धता भी दुर्घटनाओं का कारण बनता है। कई बार विमानों की नियमित जांच और मरम्मत में लापरवाही बरती जाती है। पुराने विमानों के पुर्जे देर से बदलने की संस्कृति भी एक जोखिम है।

ICAO (International Civil Aviation Organization) के नियमों के अनुसार, हर देश को अपनी विमानन प्रणाली को लगातार अपडेट करते रहना होता है। लेकिन भारत में DGCA (Directorate General of Civil Aviation) के पास स्टाफ की कमी और संसाधनों का अभाव है। इसके चलते जाँच में देरी होती है और सुधारात्मक कदम कारगर नहीं हो पाता हैं।

हर विमान हादसे के बाद जो लोग बच जाते हैं, उनके जीवन में हमेशा के लिए एक डर बैठ जाता है। कई परिवार उजड़ जाते हैं, कई बच्चे अनाथ हो जाते हैं। न केवल जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा पर भी गहरा आघात पहुंचता है।



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