तिहाड़ जेल में कैदी को बनाया जाएगा आत्मनिर्भर

Jitendra Kumar Sinha
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नई दिल्ली की तिहाड़ जेल, जो कभी सिर्फ अपराधियों के लिए बंद कोठरियों की पहचान थी, अब आत्मनिर्भरता और उत्पादकता की एक नई मिसाल बनने जा रहा है। जेल प्रशासन द्वारा प्रस्तावित योजना के तहत कैदियों को रोजमर्रा की जरूरतों का सामान खुद तैयार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके अंतर्गत चप्पल, टूथपेस्ट, अंडरवियर जैसे सामान्य उपभोग की वस्तुओं का निर्माण जेल परिसर के अंदर ही किया जाएगा। यह प्रस्ताव न केवल जेल के भीतर उत्पादक गतिविधियों को बढ़ावा देगा, बल्कि इससे सरकारी खर्च में भी उल्लेखनीय कमी आएगी। सबसे बड़ी बात है कि इससे कैदियों को न सिर्फ कार्य में व्यस्त रखा जा सकेगा, बल्कि उन्हें एक आत्मनिर्भर नागरिक बनने की दिशा में भी मार्गदर्शन मिलेगा।

तिहाड़ प्रशासन के अनुसार, जेल के अंदर कैदियों की बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। हालांकि कुछ निर्माण इकाइयाँ पहले से कार्यरत हैं, फिर भी केवल 8% कैदी ही कार्यरत हैं। इस नई योजना का उद्देश्य यह प्रतिशत बढ़ाकर कम से कम 25% तक ले जाना है। मनुष्य जब किसी रचनात्मक काम में व्यस्त होता है, तो उसका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। जेल में व्यस्तता और उत्पादकता न केवल समय काटने का साधन होती है, बल्कि इससे अपराधियों के मन में आत्मगौरव की भावना भी जागता है। रोजमर्रा की वस्तुओं की खरीदारी में जो पैसा खर्च होता है, वह कैदियों द्वारा निर्मित सामग्रियों से बचाया जा सकता है। साथ ही, जेल में बने सामान का उपयोग सरकार अन्य विभागों में भी कर सकता है।

तिहाड़ जेल में पहले से कुछ निर्माण इकाइयाँ संचालित हैं, जिनमें कैदी बेक्ड मिठाइयाँ, फर्नीचर, मसाले और स्नैक्स तैयार करते हैं। तिहाड़ के कैदियों द्वारा बनाया गया फर्नीचर दिल्ली के सरकारी स्कूलों में उपयोग किया जाता है। यह न केवल गुणवत्ता में अच्छा होता है, बल्कि कम लागत में भी तैयार होता है। "तिहाड़ बेकरी" के नाम से चलने वाले आउटलेट्स दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत हैं, जहां से बेक्ड वस्तुएं आम नागरिक भी खरीदते हैं। जेल के अंदर तैयार किए गए मसाले एवं स्नैक्स अब खुद को एक ब्रांड के रूप में स्थापित कर चुका हैं। कुछ कैदी दर्जी के रूप में कार्य करते हैं और सफेद शर्ट सिलते हैं, जिन्हें दिल्ली के वकील तक खरीदते हैं।

जेल प्रशासन अब जेल में निर्मित वस्तुओं की “इन-हाउस निर्माण इकाइयाँ” स्थापित करने की योजना बना रहा है। हल्के, टिकाऊ और सस्ते चप्पल तैयार किए जाएंगे जो जेल के अंदर उपयोग के लिए उपयुक्त होंगे। जेल में उपयोग होने वाले टूथपेस्ट की आवश्यकता को पूरा करने हेतु एक छोटी लेकिन स्वच्छ इकाई बनाई जाएगी। यह एक बहुत ही जरूरी लेकिन अब तक अनदेखा क्षेत्र रहा है। इससे न केवल जरूरतें पूरी होंगी, बल्कि दर्जी कार्य में भी विस्तार मिलेगा। प्रशासन जल्द ही इन सभी इकाइयों की स्थापना हेतु सरकार को प्रस्ताव भेजने वाला है।

तिहाड़ जेल में श्रमिकों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। पहला श्रेणी अकुशल श्रमिक का होता है इसमें वह कैदी होता है जो पहले कभी किसी कार्य में प्रशिक्षित नहीं रहा हो। दूसरा श्रेणी अर्ध-कुशल श्रमिक का होता है, जिसमें तीन महीने की प्रशिक्षण के बाद रहता है। तीसरा श्रेणी में कुशल श्रमिक होता है, जिसमें छह महीने तक कार्य में निपुण होने के बाद रहता है । इस प्रक्रिया से कैदी धीरे-धीरे अपने कौशल में वृद्धि करते हैं और उनकी आत्मनिर्भरता में इजाफा होता है।

तिहाड़ जेल में कार्यरत श्रमिकों को उनके कार्य के अनुसार वेतन दिया जाता है। जो अकुशल श्रमिक होते हैं उन्हें औसतन ₹7,000 प्रति माह और जो कुशल श्रमिक होते हैं उन्हें औसतन ₹10,000 प्रति माह दिया जाता है। यह कमाई उनके परिवारों को भेजा जा सकता है या सजा पूरी होने के बाद पुनर्वास के लिए बचाया जा सकता है। कुछ कैदी इस आमदनी से अपने बच्चों की पढ़ाई तक का खर्च चला रहे हैं।

तिहाड़ जेल द्वारा प्रस्तावित निर्माण इकाइयाँ कैदियों के पुनर्वास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल हैं। इससे समाज में यह संदेश जाएगा कि हर अपराधी को एक दूसरा मौका मिलना चाहिए और उचित मार्गदर्शन से वे समाज के लिए उपयोगी बन सकता हैं। ऐसा करने से जेल के कैदियों में आत्मसम्मान की भावना जागेगी। पुनः अपराध की प्रवृत्ति में कमी आएगी और जेल की छवि केवल सजा भुगतने की जगह से बदलकर, प्रशिक्षण और सुधार केंद्र के रूप में उभरेगी।

अगर यह मॉडल सफल होता है, तो इसे देश की अन्य जेलों में भी लागू किया जा सकता है। भारत में हजारों जेलें हैं जिनमें लाखों कैदी बंद हैं। अगर प्रत्येक जेल अपने-अपने क्षेत्र के अनुसार, कुछ निर्माण इकाइयाँ शुरू करता हैं, तो यह न केवल देश की जेल व्यवस्था को उत्पादक बनाएगा, बल्कि एक बड़ा आर्थिक मॉडल भी विकसित कर सकता है।

तिहाड़ जेल का यह प्रस्ताव केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं है, बल्कि यह एक सुधारवादी सोच का प्रतीक है। जब जेलें सुधार और आत्मनिर्भरता के केंद्र बनेंगी, तो न केवल कैदियों का भविष्य सुधरेगा, बल्कि समाज भी अपराधियों को पुनः स्वीकार करने के लिए अधिक संवेदनशील और सकारात्मक हो सकेगा। यह योजना बताती है कि अगर सोच रचनात्मक हो और नीयत सुधार की हो, तो जेल की दीवारों के भीतर भी उम्मीद की किरणें खिल सकता हैं।



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