महाराष्ट्र की वामपंथी राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण आया है जब “लाल निशान पार्टी (महाराष्ट्र)” ने औपचारिक रूप से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन यानि भाकपा (माले) में विलय होने की घोषणा की। यह विलय महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के श्रीरामपुर स्थित गोविंदराव अतिथि सभागार में आयोजित एकता सम्मेलन के दौरान हुआ, जिसमें सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ता, स्थानीय नेता और शीर्ष नेतृत्व शामिल थे।
“लाल निशान पार्टी” का गठन ही मजदूरों, किसानों और मेहनतकश वर्गों के हक की लड़ाई के लिए हुआ था। यह पार्टी महाराष्ट्र के सतारा, सांगली, कोल्हापुर, पुणे, अहमदनगर, परभणी और नांदेड़ जैसे इलाकों में वर्षों से सक्रिय रही है। खासकर सहकारी आंदोलनों, कपड़ा मिल मजदूरों के संघर्ष, और कृषि क्षेत्र में इसके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। भाकपा (माले) भी पूरे देश में जन आंदोलनों, दलित-पिछड़ा संघर्ष, श्रमिक हितों और लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई का चेहरा रही है। इस विलय के साथ दोनों पार्टियों की ताकत और जनाधार एक हो गया हैं।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस विलय को देशभर की वामपंथी ताकतों के लिए प्रेरणा बताते हुए कहा है कि “इस एकता के बल पर हम देश में फैलती फासीवादी ताकतों को करारी शिकस्त देंगे। यह सिर्फ संगठनात्मक विलय नहीं है, बल्कि विचारधारात्मक समन्वय है।” दीपंकर भट्टाचार्य ने यह भी कहा है कि यह गठबंधन सिर्फ चुनावी नहीं है, बल्कि जन आंदोलनों की नई लहर को जन्म देगा।
इस एकता का सबसे बड़ा संदेश यह है कि वामपंथी ताकतें अब बिखराव नहीं, एकता की राह पर हैं। यह गठबंधन महाराष्ट्र में केवल संगठनात्मक मजबूती नहीं लाएगा, बल्कि गांव-गांव तक वैकल्पिक राजनीति की अलख जगाएगा। खासकर कृषि संकट, श्रमिक अधिकार, निजीकरण और सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ यह एकजुटता नई रणनीतियों को जन्म देगी।
सम्मेलन में मौजूद स्थानीय स्तर पर दोनों पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस एकता का स्वागत करते हुए इसे “संघर्ष की नई शुरुआत” बताया है। यह साफ है कि जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता इस कदम को मजबूती देंगे।
“लाल निशान पार्टी” और “भाकपा (माले)” का विलय एक राजनीतिक पुनर्रचना की शुरुआत है, जो न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश की वामपंथी राजनीति को नया आयाम देगा। यह विलय संघर्ष, संगठन और वैचारिक प्रतिबद्धता का मिसाल है। आने वाले समय में इसका असर जमीन पर दिखेगा और आंदोलनों की धार और चुनावी हस्तक्षेप से दोनों ही मजबूत होगा।