भारत में सामाजिक न्याय और समावेशन की अवधारणा ने लंबे समय तक वंचित समुदायों को प्राथमिकता दी है, लेकिन हाल के वर्षों में उच्च जातियों के भीतर मौजूद आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की समस्याओं पर भी सरकारी संस्थानों का ध्यान गया है। इसी दिशा में बिहार सरकार द्वारा गठित सवर्ण आयोग की पहली बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। इस निर्णय के अंतर्गत तीन उपसमितियों का गठन कर उन वर्गों के लिए विकास कार्यों की शुरुआत किया जा रहा है जो आर्थिक रूप से तो पिछड़े हैं, लेकिन पारंपरिक रूप से 'उच्च जाति' की श्रेणी में आते हैं।
सवर्ण आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य राज्य में उच्च जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन करना और उनके विकास के लिए उपयुक्त नीतियों की सिफारिश करना है। यह आयोग सामाजिक न्याय के क्षेत्र में संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक बड़ी पहल माना जा रहा है। वर्ष 2022-23 में बिहार सरकार द्वारा कराई गई जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को इस आयोग के कार्यों का आधार बनाया गया है। इस जनगणना ने समाज के हर तबके की जनसंख्या, आर्थिक स्थिति, शिक्षा और रोजगार के आंकड़े स्पष्ट कर दिया हैं, जिससे नीतियों को अधिक न्यायसंगत रूप में लागू किया जा सकता है।
पहली बैठक में अध्यक्ष: डॉ. महाचंद्र प्रसाद सिंह, उपाध्यक्ष: राजीव रंजन प्रसाद, सदस्य: राजकुमार सिंह, जय कृष्ण झा, दयानंद राय उपस्थित थे। समिति केन्द्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10% आरक्षण देने के निर्णय पर आभार व्यक्त किया है।
सवर्ण आयोग ने पहली उपसमिति का गठन नौकरी में आयु सीमा में छूट देने के उद्देश्य से किया है, जिसके संयोजक बने हैं समिति सदस्य राजकुमार सिंह। यह उप समिति आर्थिक रूप से पिछड़े उच्च जाति के युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों में उम्र सीमा में छूट देने के प्रावधान पर कार्य करेगी। अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के युवा संसाधनों की कमी के कारण पढ़ाई में विलंब से ग्रेजुएट होते हैं, जिससे वे सामान्य आयु सीमा में प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाते हैं। इस उपसमिति का कार्य उनके लिए समान अवसर उपलब्ध कराना होगा।
सवर्ण आयोग ने दूसरी उपसमिति का गठन छात्रावास की व्यवस्था सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया है। इस उप समिति के संयोजक बने है समिति के सदस्य जय कृष्ण झा। राज्य के सभी जिलों में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण छात्रों के लिए छात्रावास सुविधा उपलब्ध कराने का कार्य करेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों के कई छात्र उच्च शिक्षा के लिए शहरों में आने से वंचित रह जाते हैं। छात्रावास की सुविधा उनके लिए शिक्षा के द्वार खोल सकता है।
सवर्ण आयोग ने तीसरी उपसमिति का गठन कोचिंग सुविधा सुनिश्चित कराने के लिए किया है। इस उप समिति के संयोजक बने हैं समिति के सदस्य दयानंद राय। सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के छात्रों को नि:शुल्क कोचिंग प्रदान करायेंगे। यूपीएससी, बीपीएससी, रेलवे, बैंक जैसी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है जो गरीब वर्ग वहन नहीं कर सकता है।
भारत में 'सवर्ण' शब्द पारंपरिक रूप से सामाजिक ऊंचाई का प्रतीक रहा है। लेकिन वर्तमान समय में उच्च जातियों के कई परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हो चुके हैं। इन परिवारों को सरकार द्वारा दी जाने वाली आरक्षण या विशेष सुविधाओं से वंचित रखा गया था। शोध बताता हैं कि बिहार जैसे राज्यों में हजारों ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ परिवार ऐसे हैं जिनकी आय सीमित है और जिनके पास न नौकरी है, न खेती की जमीन। इस वर्ग के छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में समान अवसर नहीं मिल पाता है।
कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने सवर्ण आयोग की पहल का समर्थन किया है। उनका मानना है कि इस कदम से एक समावेशी विकास मॉडल को बढ़ावा मिलेगा और समाज में व्याप्त असंतुलन को संतुलित किया जा सकेगा। लेकिन कुछ दलों और संगठनों ने इसे जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति करार दिया है। उनका तर्क है कि जातियों के नाम पर विकास के बजाय सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर ही योजनाएं बननी चाहिए।
आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों की पहचान के लिए पारदर्शी मापदंडों का निर्धारण आवश्यक है। जैसे- पारिवारिक आय सीमा, जमीन की मात्रा, शिक्षा का स्तर। छात्रावास, कोचिंग और नौकरी में आयु सीमा जैसी योजनाओं को लागू करने के लिए राज्य सरकार को बजट आवंटन सुनिश्चित करना चाहिए। बिना पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के यह योजना केवल कागजों तक ही सीमित रह सकता है। सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए योजना बनाते समय यह भी ध्यान रखना होगा कि अन्य वर्गों में भेदभाव या असंतोष की भावना न पनपे। सबको समान अवसर देने का सिद्धांत आयोग के निर्णयों का मूल होना चाहिए।
बिहार का यह कदम अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा बन सकता है। यदि यह मॉडल सफल होता है, तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में भी सवर्ण आयोग के गठन की मांग उठ सकता है।
बिहार में सवर्ण आयोग का गठन और उप समितियों की स्थापना यह संकेत दे रहा है कि अब सामाजिक न्याय की परिभाषा केवल जाति आधारित नहीं रह गई है, बल्कि उसमें आर्थिक आधार को भी प्राथमिकता दिया जा रहा है। यह एक ऐसा कदम है जो न केवल नीति निर्माताओं की दूरदृष्टि को दर्शाता है, बल्कि समाज के उस वर्ग के लिए आशा की किरण भी है जो अब तक उपेक्षित रहा है। सरकार, आयोग और समाज के समन्वित प्रयासों से ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि किसी भी वर्ग का कोई व्यक्ति सिर्फ जाति के नाम पर वंचित न रहे और वास्तविक जरूरतमंदों तक विकास की रोशनी पहुंच सके।