सिंगापुर, जो अपने सख्त कानूनों और साफ-सुथरी प्रशासनिक व्यवस्था के लिए दुनियाभर में जाना जाता है, वहां पहली बार किसी पूर्व कैबिनेट मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में सजा सुनाई गई है। भारतीय मूल के पूर्व मंत्री एस. ईश्वरन (S. Iswaran) को भ्रष्टाचार के एक गंभीर मामला में दोषी ठहराया गया था। उन्होंने अपनी 12 महीने की जेल की सजा पूरी कर लिया है।
एस. ईश्वरन सिंगापुर की राजनीति में एक प्रभावशाली नाम रहा है। वे व्यापार, परिवहन और सूचना जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में वरिष्ठ मंत्री रह चुके हैं। भारतीय मूल के होने के बावजूद उन्होंने सिंगापुर की राजनीति मुख्यधारा में अपनी एक खास पहचान बनाई थी। उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगने से पहले तक उन्हें एक ईमानदार और अनुभवी प्रशासक माना जाता था।
2023 में सिंगापुर के भ्रष्टाचार जांच ब्यूरो (CPIB) ने ईश्वरन के खिलाफ जांच शुरू किया था। उन पर व्यापारिक फायदे के बदले में उपहार, टिकट और लक्जरी सेवाएं स्वीकार करने का आरोप था। जांच में पुख्ता सबूत मिलने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था और फिर अदालती प्रक्रिया के तहत दोषी ठहराया गया। मामले में मुख्य गवाह एक बिजनेसमैन था जिसने यह स्वीकार किया कि ईश्वरन ने उसके बदले कई सरकारी फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश किया था।
सिंगापुर की सरकार ने हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। इसी नीति के तहत कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पद पर क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं माना जाता है। एस. ईश्वरन की गिरफ्तारी और सजा ने एक बार फिर इस नीति की गंभीरता को दुनिया के सामने रखा है। यह घटना सिंगापुर में शासन की पारदर्शिता और कानून के समक्ष समानता का प्रतीक बन गया है।
ईश्वरन को 12 महीने की सजा सुनाई गई थी, जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ भुगता। जेल में उन्होंने सामान्य कैदी की तरह नियमों का पालन किया। उनकी रिहाई के बाद सिंगापुर की जनता और मीडिया ने इसे एक साहसिक और पारदर्शी कार्रवाई माना है।
भारतीय मूल के व्यक्ति का इस प्रकार दोषी ठहराया जाना एक झटका जरूर था, लेकिन भारतीय समुदाय ने इसे निष्पक्ष न्याय की जीत माना है। कई सामाजिक संगठनों ने सिंगापुर की न्याय प्रणाली की सराहना किया है और कहा है कि "गलती करने वाला कोई भी हो, उसे सजा मिलनी ही चाहिए।"
एस. ईश्वरन की गिरफ्तारी और सजा इस बात का उदाहरण है कि एक सशक्त लोकतंत्र में कानून सबसे ऊपर होता है। सिंगापुर ने यह दिखाया है कि न तो राजनीति में ओहदा किसी को बचा सकता है और न ही सामाजिक प्रतिष्ठा।