विश्व मौसम विज्ञान संगठन का रिपोर्ट - अगले पांच वर्ष में डेढ़ डिग्री तक बढ़ जाएगा दुनिया का औसत तापमान

Jitendra Kumar Sinha
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मानव इतिहास में कई बार प्राकृतिक आपदाओं ने सभ्यताओं को चुनौती दी है, पर आज हम जिस संकट के सामने खड़ा हैं, वह पूरी मानवता के अस्तित्व को ही खतरे में डाल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की ताजा रिपोर्ट ने दुनिया के लिए एक और गंभीर चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले पाँच वर्षों (2025-2029) में वैश्विक तापमान में औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकता है, जो पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों से कहीं अधिक है। 

पेरिस जलवायु समझौता दिसंबर 2015 में 196 देशों के बीच हुआ था। इसका मुख्य उद्देश्य था वैश्विक तापमान वृद्धि को प्री-इंडस्ट्रियल स्तर (1850-1900) से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे बनाए रखना, और प्रयास करना कि इसे 1.5 डिग्री तक सीमित रखा जाए।

WMO की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025-2029 के बीच इस 1.5 डिग्री की सीमा को पार करने की 70% संभावना है। 2024 से अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है, और रिपोर्ट के अनुसार, अगले पांच वर्षों में कोई एक साल उससे भी अधिक गर्म हो सकता है।

तापमान के पूर्वानुमान के अनुसार, औसत वैश्विक तापमान वृद्धि 1.2°C से 1.9°C के बीच रह सकता है। अगले पांच वर्षों में 1.5°C तापमान वृद्धि की संभावना 70% तक बढ़ गई है, जबकि 2022 की रिपोर्ट में यह केवल 47% था। किसी एक वर्ष में यह वृद्धि 1.5°C से अधिक हो सकता है – इसकी संभावना 80% है। WMO का कहना है कि यह तापमान वृद्धि "चरम मौसम घटनाओं" को बढ़ाएगी, जैसे- अत्यधिक गर्मी की लहरें, भारी वर्षा और बाढ़, लंबे समय तक सूखा, बर्फ का तीव्र पिघलाव और समुद्री जलस्तर में वृद्धि।

ध्रुवीय क्षेत्र बारेंट्स सागर, बेरिंग सागर और ओखोटस्क सागर में बर्फ की मात्रा में भारी गिरावट की संभावना है। दक्षिण एशिया में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ सकता हैं। अमेजन क्षेत्र में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचेगा। उत्तरी यूरोप और साइबेरिया में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है, जो कृषि और बर्फीले इलाकों के लिए चुनौतीपूर्ण होगी।

बढ़ते तापमान के प्रभाव से आग, बाढ़ और सुखाड़ का वैश्विक संकेत मिल रहा है, जिसके कारण कनाडा में जंगलों की भीषण आग, भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और घाना में असामान्य बाढ़ की घटनाएं, लंदन की जलवायु वैज्ञानिक फ्रेडरिक ओटो के अनुसार, "हम पहले ही खतरनाक गर्मी के स्तर तक पहुंच चुके हैं।"
फसल की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव, मिट्टी की नमी में कमी, कीटों और बीमारियों का प्रसार, ऊर्जा मांग में वृद्धि जिससे लागत बढ़ेगी, बीमा और आपदा राहत की लागतों में उछाल, विकासशील देशों में गरीबी और भुखमरी की स्थिति गंभीर हो सकती है। 

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, पिछले 5 में से 4 वर्षों में सामान्य से अधिक वर्षा हुई है। WMO की रिपोर्ट इस प्रवृत्ति के जारी रहने की संभावना बताती है, जो बाढ़ की घटनाओं को बढ़ा सकता है।

भारत में अस्थिर मानसून से कृषि चक्र प्रभावित होगा, सिंचाई और जलस्रोतों पर दबाव, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में असंतुलन, बढ़ते तापमान से शहरी हीट आइलैंड प्रभाव बढ़ेगा, ऊर्जा खपत और एयर कंडीशनिंग पर निर्भरता बढ़ेगी और गरीब तबके के लिए स्वास्थ्य खतरा होगा।

पिछले 10 वर्षों को अब तक का सबसे गर्म दशक के रूप में दर्ज किया गया है। रिपोर्ट आने वाले वर्षों में राहत के कोई संकेत नहीं दे रही है। जलवायु विशेषज्ञों की राय है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की आशंका नहीं, वर्तमान की सच्चाई है। CO₂ उत्सर्जन में तुरंत और बड़े पैमाने पर कटौती आवश्यक है। नीतिगत और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर परिवर्तन जरूरी है।

 वैश्विक स्तर पर निष्क्रियता रही है क्योंकि बड़े देशों द्वारा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के वादों का पालन नहीं किया गया। जिसके कारण जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बनी हुई है। चीन, अमेरिका और भारत विश्व के शीर्ष कार्बन उत्सर्जक है। परिवहन, उद्योग और बिजली उत्पादन सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।

इसके समाधान के लिए सौर, पवन और जल ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा, कोयला आधारित बिजलीघरों को चरणबद्ध तरीके से बंद करना होगा। वन क्षेत्र को बढ़ाना और अवैध कटाई पर रोक लगाना होगा। शहरी हरियाली को प्रोत्साहन देना होगा। सार्वजनिक परिवहन का उपयोग,  ऊर्जा दक्षता वाले उपकरणों का प्रयोग, उपभोग में संयम और पुनर्चक्रण करना होगा। जलवायु परिवर्तन पर सख्त कानूनों की जरूरत है, कार्बन टैक्स और ग्रीन क्रेडिट जैसे तंत्र लागू करना होगा, और विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी मदद करनी होगी।

WMO की रिपोर्ट केवल एक वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं है बल्कि, यह एक चेतावनी है मानवता के लिए। यदि अभी भी विश्व समुदाय और नागरिक जागरूक नहीं हुए, तो अगला दशक केवल “सबसे गर्म दशक” ही नहीं, “सबसे विनाशकारी दशक” भी हो सकता है।  

WMO के रिपोर्ट के अनुसार, 2025-2029 के बीच औसत तापमान वृद्धि 1.5°C से अधिक हो सकता है। 2024 से अधिक गर्म साल आने की संभावना प्रबल है। ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ में भारी कमी होगी। दक्षिण एशिया में भारी वर्षा के आसार हैं। अमेजन क्षेत्र में सूखे की संभावना। चरम पर मौसम घटनाएं बढ़ेंगी बाढ़, सूखा, आग। अर्थव्यवस्था, कृषि, स्वास्थ्य सभी प्रभावित होंगे। पेरिस समझौता लक्ष्य पूरा होने की संभावना कमेगी। नवीकरणीय ऊर्जा, वनों की रक्षा, नीति बदलाव आवश्यक है। व्यक्तिगत स्तर पर जीवनशैली में बदलाव भी जरूरी है।



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