बिहार के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक ऐतिहासिक परिवर्तन की नींव रखा जा चुका है। जहां एक ओर पटना में स्थापित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ने राज्य की चिकित्सा सेवाओं को नई दिशा दी है, वहीं अब दरभंगा में दूसरा एम्स बनने से बिहार देश का दूसरा ऐसा राज्य बन जाएगा जहां दो एम्स होगा। यह कदम राज्य के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
पटना एम्स की नींव वर्ष 2003 में रखी गई थी, जब केंद्र सरकार ने बिहार में एम्स की स्थापना को स्वीकृति दी थी। वर्षों के प्रयासों के बाद यह संस्थान आज पूरी तरह कार्यरत है और राज्य के लाखों लोगों को उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहा है। अत्याधुनिक सुविधाओं, अनुभवी डॉक्टरों और उन्नत चिकित्सा तकनीकों के कारण पटना एम्स आज बिहार का चिकित्सा केंद्र बन चुका है।
दरभंगा में बनने वाले एम्स को केंद्र सरकार ने 2015 में मंजूरी दी थी। इसके लिए लगभग 150 एकड़ भूमि चिन्हित किया जा चुका है और निर्माण कार्य भी प्रारंभ हो चुका है। यह संस्थान केवल मिथिलांचल ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर बिहार की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करेगा। यहां न केवल इलाज की सुविधा होगी, बल्कि चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
अब तक बिहार के लोग जटिल बीमारियों के इलाज के लिए दिल्ली, मुंबई या अन्य राज्यों की ओर रुख करते थे। लेकिन अब दो-दो एम्स की उपलब्धता से राज्य के अंदर ही उन्नत इलाज संभव होगा। इससे न केवल आर्थिक बोझ कम होगा, बल्कि समय की भी बचत होगी और स्वास्थ्य सेवाओं में आत्मनिर्भरता आएगी।
एम्स जैसे बड़े संस्थान का निर्माण केवल चिकित्सा की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय विकास की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह निर्णय सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनता के प्रति उत्तरदायित्व को दर्शाता है। दरभंगा एम्स के चलते स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, चिकित्सा शिक्षा का विस्तार होगा और क्षेत्र का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित होगा।
पटना और दरभंगा में एम्स की स्थापना बिहार को ‘स्वस्थ बिहार, समृद्ध बिहार’ के लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसर कर रही है। यह न केवल एक चिकित्सा संस्थान है, बल्कि बिहारवासियों की आकांक्षाओं, अधिकारों और उम्मीदों की प्रतीक है। आने वाले समय में यह पहल बिहार को चिकित्सा मानचित्र पर एक प्रमुख स्थान दिलाएगा।
