
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया को रोकने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि वह इस प्रक्रिया पर तत्काल रोक नहीं लगाएगा। कोर्ट ने कहा कि यह एक नियमित प्रक्रिया है और इसे रोका नहीं जा सकता। हालांकि, अदालत ने चुनाव आयोग से यह जरूर पूछा कि जब यह प्रक्रिया वैध है तो इसे चुनाव के इतने करीब लाने की क्या ज़रूरत थी।
चुनाव आयोग की तरफ से कहा गया कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण 2003 से होता आ रहा है और यह लोकतंत्र के लिए जरूरी प्रक्रिया है। आयोग ने यह भी बताया कि इस बार 57% मतदाताओं ने पहले ही फॉर्म भर दिए हैं और बाकियों से दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं ताकि सूची को शुद्ध किया जा सके। आयोग ने 11 वैकल्पिक दस्तावेजों की सूची दी है जिनके आधार पर नागरिकों की पहचान हो सकती है। इनमें आधार, राशन कार्ड, वोटर आईडी जैसे दस्तावेज शामिल हैं।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि आधार को केवल पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन नागरिकता प्रमाण के रूप में नहीं। कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को यह भी कहा कि दस्तावेज़ों की सूची को अंतिम न माना जाए और लोगों को कई विकल्प दिए जाएं।
इस बीच, विपक्ष ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि यह कदम गरीब, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग बीजेपी की इकाई की तरह काम कर रहा है। राहुल गांधी, महुआ मोइत्रा जैसे नेताओं ने भी इसे संविधान के खिलाफ और मताधिकार के उल्लंघन के रूप में देखा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अभी इस प्रक्रिया को रोकने का आदेश नहीं देगा, लेकिन मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। तब तक आयोग को सभी पक्षों की बातों को ध्यान में रखते हुए प्रक्रिया को पारदर्शी और संवेदनशील ढंग से आगे बढ़ाना होगा।
यह मुद्दा अब केवल चुनावी रणनीति या प्रशासनिक प्रक्रिया का नहीं, बल्कि मतदाता अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों का बन चुका है। कोर्ट के अगले कदम पर पूरे देश की नजर टिकी रहेगी।
