सावन की बूंदें जब धरती पर गिरती हैं, तो प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। इसी हरियाली में भोपाल से करीब 28 किलोमीटर दूर स्थित सावन की बूंदें जब धरती पर गिरती हैं, तो प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। इसी हरियाली में भोपाल से करीब 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर का भोजेश्वर मंदिर एक अलौकिक छवि लेकर उभरता है। यह शिवधाम न केवल आध्यात्मिक श्रद्धा का केन्द्र है, बल्कि ऐतिहासिक स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण भी है।
इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के महान सम्राट राजा भोज द्वारा कराया गया था। बेतवा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर अधूरा रह गया, पर इसका वैभवपूर्ण स्वरूप आज भी इतिहास की गाथा सुनाता है। राजा भोज को विद्या, वास्तुकला और धर्म का मर्मज्ञ माना जाता है और भोजेश्वर मंदिर उनका एक उत्कृष्ट निर्माण है।
भोजेश्वर मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका विशाल एकाश्म शिवलिंग है, जिसकी ऊँचाई लगभग 18 फीट और व्यास 7.5 फीट है। यह भारत के सबसे ऊंचे और सबसे विशाल शिवलिंगों में से एक है, और एक ही पत्थर से निर्मित है। इस शिवलिंग को देखने मात्र से ही भक्तों के मन में श्रद्धा और विस्मय का भाव उत्पन्न होता है।
मंदिर की छत अधूरी है, परंतु इसकी दीवारें, स्तंभ और आधारशिला आज भी राजा भोज की वास्तुकला के ज्ञान और दृष्टिकोण की गवाही देती हैं। इस मंदिर के पास खुदे हुए वास्तु योजनाएं आज भी शिल्पाचार्यों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है। यही कारण है कि भोजेश्वर मंदिर को 'भारत का सोमनाथ इन स्टोन' भी कहा जाता है।
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दौरान देशभर से शिवभक्त भोजेश्वर मंदिर पहुंचते हैं और इस विशाल शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। हरियाली के बीच शिव का यह धाम ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वर्ग धरती पर उतर आया हो। मंत्रों की गूंज, घंटियों की ध्वनि और भक्तों की आस्था से यह स्थान एक आध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र में परिवर्तित हो जाता है।
भोजेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक प्रमुख पर्यटन केंद्र भी है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित यह स्थल इतिहास, संस्कृति और श्रद्धा का संगम है। आसपास की हरियाली, शांत वातावरण और बेतवा नदी का किनारा इसे एक आदर्श दर्शनीय स्थल बनाता है।
भोजेश्वर मंदिर एक ऐसा स्थल है जहाँ प्रकृति की गोद में अध्यात्म और इतिहास साथ-साथ चलता है। सावन में इसकी भव्यता और भी निखर उठता है, मानो शिव स्वयं इस धाम में निवास कर रहे हों। यह मंदिर न केवल भक्तों के लिए आस्था का केन्द्र है, बल्कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर का गौरव भी है।
