पुनौराधाम में जागेगा मिथिला की संस्कृति - सीता जन्मस्थली बनेगा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार के मिथिला क्षेत्र की सांस्कृतिक आत्मा पुनौराधाम मंदिर अब एक नया और भव्य रूप में निखरने जा रहा है। मां सीता की जन्मस्थली माने जाने वाला यह पावन भूमि अब न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनेगी, बल्कि यहां मिथिला की गौरवशाली कला, संस्कृति और शिक्षा का भी प्रसार होगा। सरकार द्वारा घोषित योजना के अनुसार, लगभग 882 करोड़ रुपये की लागत से अगले तीन वर्षों में इस मंदिर परिसर का पुनर्निर्माण और विस्तार किया जाएगा।

पुनौराधाम मंदिर को अब सिर्फ एक धार्मिक स्थल के रूप में नहीं, बल्कि मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर के जीवंत संग्रहालय की तरह विकसित किया जाएगा। मंदिर परिसर में ‘मिथिला हाट’ का निर्माण किया जाएगा, जहां मधुबनी पेंटिंग, लोकचित्रण, सुजनी कढ़ाई, सिक्की शिल्प, और तुलसी माला निर्माण जैसी पारंपरिक हस्तकलाओं की प्रदर्शनी और बिक्री होगी। इससे एक ओर जहां स्थानीय कारीगरों को रोजगार मिलेगा, वहीं देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु मिथिला की कला और संस्कृति से साक्षात्कार कर सकेंगे।

आध्यात्मिक उन्नयन के साथ-साथ इस परियोजना में शैक्षणिक पहल को भी समाहित किया गया है। मंदिर परिसर में वेद पाठशाला की स्थापना किया जा रहा है, जहां वैदिक मंत्रों का उच्चारण, यज्ञ-विधि, संस्कृत अध्ययन और सनातन शास्त्रों की पारंपरिक शिक्षा दिया जाएगा। यह संस्कृति और ज्ञान की परंपरा को संजोने का प्रयास होगा, जिससे युवा पीढ़ी अपने धार्मिक मूल्यों और आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ सकेगा।

मिथिला की सांस्कृतिक महत्ता और पुनौराधाम की पौराणिकता को देखते हुए यह प्रोजेक्ट धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा देगा। मंदिर के सुंदरीकरण, विस्तृत परिसर और हस्तशिल्प हाट के चलते यह स्थान एक पर्यटक केंद्र के रूप में उभरेगा। इससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि सीतामढ़ी क्षेत्र को भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर विशेष पहचान मिलेगी।

मां सीता की जन्मभूमि के रूप में पुनौराधाम नारी गरिमा और शक्ति का प्रतीक है। इस परियोजना के माध्यम से मिथिला के लोकगौरव, पारंपरिक ज्ञान और कला का संरक्षण होगा, साथ ही महिलाओं को हस्तशिल्प प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।

पुनौराधाम मंदिर परियोजना न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक बनेगा, बल्कि यह मिथिला की सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आधारशिला भी सिद्ध होगा। यह योजना एक ऐसे भविष्य की ओर संकेत करती है, जहां परंपरा और आधुनिकता, दोनों का संतुलन देखने को मिलेगा।



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