एयर इंडिया की दुर्घटना को लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आई रिपोर्टों पर अब विवाद खड़ा हो गया है। फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन पायलट्स (FIP) ने रॉयटर्स और वॉल स्ट्रीट जर्नल को कानूनी नोटिस भेजा है। पायलट संघ का आरोप है कि इन संस्थाओं ने बिना पूरी जांच के, पायलटों को दुर्घटना का दोषी ठहरा दिया है, जिससे न केवल उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है बल्कि उनके परिवारों को मानसिक आघात भी पहुंचा है।
FIP के अध्यक्ष कैप्टन सीएस रंधावा ने कहा कि इन रिपोर्टों में तथ्यों की अनदेखी की गई और जांच पूरी होने से पहले ही भ्रामक खबरें फैलाई गईं। उनका कहना है कि ऐसी पत्रकारिता पायलटों की छवि खराब करती है और यह गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार है। उन्होंने मांग की है कि इन मीडिया संस्थानों को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए, वरना वे कानूनी कार्रवाई के लिए बाध्य होंगे।
दुर्घटना की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, विमान के दोनों इंजन टेकऑफ के कुछ ही सेकंड बाद बंद हो गए थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि फ्यूल कट-ऑफ स्विच अचानक 'रन' से 'कट-ऑफ' पोजीशन में आ गए थे, जिससे इंजन फेल हो गया और विमान कुछ ही क्षणों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि, जांच एजेंसियों ने साफ कर दिया है कि यह रिपोर्ट प्रारंभिक है और अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचने में समय लगेगा।
इस पूरे मामले में अमेरिका की राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (NTSB) की अध्यक्ष जेनिफर होमेंडी ने भी अंतरराष्ट्रीय मीडिया को फटकार लगाई है। उन्होंने कहा कि जांच अभी चल रही है और इस स्तर पर पायलटों को दोषी बताना जल्दबाजी और गैर-पेशेवर रवैया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पायलटों की मानसिक स्थिति पर लगाए गए आरोप निराधार हैं।
भारतीय पायलटों के अलावा अंतरराष्ट्रीय पायलट संघों ने भी इन रिपोर्टों की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में मीडिया को संयम बरतना चाहिए और तब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए जब तक जांच पूरी न हो जाए।
इस घटना के बाद पायलट समुदाय में गहरा रोष है। पायलट संघों का कहना है कि जब तक दुर्घटना के कारणों की जांच पूरी नहीं होती, तब तक किसी पर आरोप लगाना ना केवल अनुचित है बल्कि यह एक पेशेवर और संवेदनशील वर्ग के साथ अन्याय भी है।
इस मामले ने यह साफ कर दिया है कि दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग में जिम्मेदारी और संयम अत्यंत आवश्यक है। जल्दबाजी में की गई रिपोर्टिंग न केवल पीड़ितों को नुकसान पहुंचा सकती है बल्कि न्याय की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकती है।
