हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले और उसके जवाब में किए गए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर संसद का मानसून सत्र राजनीतिक तूफान की आहट दे रहा है। संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर बहस की योजना बनाई गई है, जहां विपक्ष और सत्ता पक्ष आमने-सामने होंगे। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने खुफिया एजेंसियों की चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया, जिसके चलते पहलगाम में यह हमला संभव हो सका। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि यह महज खुफिया विफलता नहीं, बल्कि एक नीतिगत असफलता भी है।
इस हमले के बाद भारत सरकार द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर को भी लेकर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष पूछ रहा है कि यह ऑपरेशन क्यों देर से शुरू हुआ, क्या अमेरिका के दबाव में इसे टाला गया और क्या इसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा था या राजनीतिक लाभ लेना? वहीं, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उन बयानों ने आग में घी डालने का काम किया है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन्होंने भारत को यह ऑपरेशन स्थगित करने की सलाह दी थी। विपक्ष का कहना है कि एक संप्रभु राष्ट्र की विदेश नीति इस तरह किसी अन्य देश के बयान या दबाव में नहीं चलनी चाहिए।
संसद में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव इस मुद्दे को उठाने वाले प्रमुख नेता होंगे। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं, और अटल बिहारी वाजपेयी की कार्यशैली का उदाहरण देते हुए कहा है कि कर्गिल युद्ध के बाद वाजपेयी सरकार ने तत्काल समीक्षा पैनल गठित किया था, जबकि मोदी सरकार ने ऐसी कोई पारदर्शी कार्रवाई नहीं की है।
सरकार की ओर से गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर बहस का नेतृत्व करेंगे। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संसद में बोल सकते हैं और विपक्ष के आरोपों का जवाब दे सकते हैं। सरकार का रुख स्पष्ट है—उनका दावा है कि ऑपरेशन सिंदूर पूरी तरह से सफल रहा और इसने आतंकियों के कई ठिकानों को तबाह कर दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने भी कहा है कि ऑपरेशन के तहत नौ ठिकानों को निशाना बनाकर सटीक कार्रवाई की गई, जिसमें सौ से अधिक आतंकी मारे गए।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे भारत की नई सैन्य रणनीति का उदाहरण बताते हुए कहा कि अब युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि लॉजिस्टिक और संसाधनों की समय पर आपूर्ति से जीते जाते हैं। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर को एक जारी प्रक्रिया बताते हुए कहा कि युद्ध में कोई रनर-अप नहीं होता—या तो आप तैयार हैं या हारने को मजबूर होंगे। सरकार की इस नीति को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी भविष्य की रणनीति का नया आधार बताया है।
वहीं दूसरी ओर, अमेरिका की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। ट्रम्प के पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष के साथ भोज और अमेरिकी जनरल माइक कुरिल्ला द्वारा पाकिस्तान की तारीफ ने विपक्ष को यह कहने का मौका दे दिया कि भारत की विदेश नीति को अमेरिका गंभीरता से नहीं ले रहा है। इससे यह बहस और जटिल हो गई है कि क्या भारत की रणनीतिक स्वायत्तता अब खतरे में है?
इन तमाम मुद्दों पर संसद में जबरदस्त बहस की उम्मीद है। एक ओर सरकार इसे अपनी निर्णायक कार्रवाई और सैन्य क्षमता का प्रमाण बता रही है, वहीं विपक्ष इसे एक चूक, रणनीतिक असफलता और विदेशी दबाव में लिए गए फैसलों की श्रृंखला बता रहा है। यह बहस न केवल सुरक्षा और सैन्य नीति को लेकर होगी, बल्कि भारत की वैश्विक छवि, विदेश नीति की दिशा और राष्ट्रीय नेतृत्व की जवाबदेही को लेकर भी निर्णायक हो सकती है। पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर अब केवल एक सैन्य या सुरक्षा मुद्दा नहीं रह गया है, यह देश की राजनीति, विदेश नीति और नेतृत्व क्षमता की अग्नि परीक्षा बन चुका है।
