“नागेश्वर ज्योतिर्लिंग”

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना 

भारत की पुण्यभूमि में शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष स्थान है। यह स्थान ना केवल आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र हैं, बल्कि हिन्दू संस्कृति की आस्था, भक्ति और शिवत्व की जीवंत प्रतीक भी हैं। इसी श्रंखला में दसवां ज्योतिर्लिंग “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग” गुजरात के द्वारका नगरी में स्थित है, जो भक्तों के लिए निर्भयता, सुरक्षा और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। यहां शिव ने स्वयं प्रकट होकर एक असुर का वध किया और भक्त की पुकार पर रक्षा का व्रत निभाया था। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा, उसका स्थापत्य, धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक महिमा इन सबका समागम इसे एक अद्वितीय तीर्थ बनाता है।

इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी कथा अत्यंत प्रेरणादायक है। पुराणों के अनुसार, दारुका नामक राक्षस ने तपस्या के बल पर शिव से वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह किसी भी वन में निवास कर सकता है। उसने एक घोर जंगल ‘दारुकावन’ में अपना राज्य स्थापित कर लिया और वहां उसने अत्याचार फैलाना शुरू कर दिया। दारुका ने सुप्रिया नामक शिव भक्त को बंदी बना लिया। सुप्रिया ने कारावास में भी शिव का स्मरण नहीं छोड़ा और ‘ॐ नमः शिवाय’ का निरंतर जाप करता रहा। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए, दारुका का वध किया और भक्त की रक्षा की। इस स्थान को तब से नागेश्वर के नाम से जाना जाने लगा।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का संबंध नागों (सर्पों) से भी माना जाता है। ‘नाग’ और ‘ईश्वर’ मिलकर बना है नागेश्वर, अर्थात् सर्पों के देवता शिव। माना जाता है कि इस स्थल पर शेषनाग और वासुकी जैसे नागों ने भी शिव की घोर तपस्या किया था। यह नाम यह भी दर्शाता है कि भगवान शिव ने केवल मनुष्यों के लिए नहीं, बल्कि समस्त जीवों के कल्याण के लिए अवतार लिया था।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का वास्तुशिल्प अत्यंत आकर्षक और शक्तिशाली है। यह पत्थर से निर्मित है, जिसे द्वारका शिला के नाम से जाना जाता है। इस शिला पर छोटे-छोटे चक्र बने होते हैं जो तीन मुखी रुद्राक्ष के आकार के होते हैं। ये चक्र शिव की त्रिनेत्र, त्रिशूल और त्रिगुण स्वरूप का प्रतीक हैं। मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है, 80 फीट ऊँची शिव की विशाल प्रतिमा, जो श्रद्धालुओं को शिवत्व का आभास कराता है। यह प्रतिमा न केवल स्थापत्य का चमत्कार है बल्कि यह प्रतीक है शिव की विराटता, निर्भीकता और अनंतता का।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में, द्वारका और बेट द्वारका के बीच स्थित है। यह स्थल पवित्र समुद्र के समीप है, जिससे इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा और भी प्रबल माना जाता है। द्वारका स्वयं में भगवान कृष्ण की नगरी है, और यही स्थान शिव और विष्णु की ऊर्जा का विलक्षण संगम भी बनाता है। ऐसे में नागेश्वर धाम में आने से भक्तों को दोनों देवताओं का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है।


शिव के इस रूप को ‘नागेशं दारुकावने’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका अर्थ है—दारुक वन में स्थित नागों के ईश्वर। चूँकि शिव ने यहाँ भक्त की रक्षा किया था, अतः इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में भय, संकट और शत्रु का नाश होता है। यह मान्यता है कि “जो श्रद्धा से नागेश्वर की आराधना करता है, उसका जीवन रोग, भय और कष्ट से मुक्त होता है”।

गुजरात के नागेश्वर को मुख्य रूप से दसवें ज्योतिर्लिंग के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन कुछ लोग महाराष्ट्र के औंढा नागनाथ (औढ़ा ग्राम) को भी असली नागेश्वर मानते हैं। औंढा नागनाथ, हिंगोली जिला में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसे सातवाहन काल में निर्मित बताया जाता है। दोनों ही स्थानों पर भक्तों की अपार श्रद्धा है, और माना जाता है कि शिव तो भाव के भूखे हैं, स्थान से अधिक श्रद्धा में उनकी कृपा होती है।

नागेश्वर में पूजा करने का एक विशिष्ट क्रम है, भक्त प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनते हैं। फिर शिवलिंग पर गंगाजल, बेलपत्र, दूध, दही, घी, शहद और चंदन अर्पित किया जाता है। रुद्राभिषेक के साथ ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप किया जाता है। विशेष रूप से सोमवार के दिन और महाशिवरात्रि के अवसर पर लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं।

महाशिवरात्रि के अवसर पर, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पर विशेष आयोजन होता है। दूर-दूर से आए श्रद्धालु रात्रि जागरण, भजन-कीर्तन, विशेष पूजन और रुद्राभिषेक के आयोजन में भाग लेते हैं। इस दिन शिव को भांग, धतूरा, सफेद पुष्प और बेलपत्र अर्पित करना विशेष फलदायक माना जाता है।

नागेश्वर की यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि एक आत्मिक अनुभव होता है। जब भक्त द्वारका की पवित्र भूमि पर कदम रखता है और फिर नागेश्वर धाम में पहुंचता है, तो वह एक गूढ़ ऊर्जा को अनुभव करता है। 80 फीट ऊँचे शिव की प्रतिमा के सामने खड़े होकर श्रद्धालु स्वयं को लघु और विनीत महसूस करता है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करते समय यात्री इन स्थलों का भी दर्शन कर सकते हैं, द्वारकाधीश मंदिर भगवान श्रीकृष्ण का प्रमुख मंदिर है। बेट द्वारका समुद्र के मध्य स्थित श्रीकृष्ण की लीलास्थली है। गोपी तालाब गोपियों की स्मृति में बना पवित्र सरोवर है। रुक्मिणी देवी मंदिर कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का मंदिर है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की भव्यता और आस्था अब केवल भारत तक सीमित नहीं है। अंतरराष्ट्रीय श्रद्धालु और पर्यटक भी यहां पहुँचते हैं। मंदिर की विशाल प्रतिमा और इसकी अध्यात्मिक शक्ति अब विश्व मानचित्र पर उभर रहा है। भारत सरकार और गुजरात पर्यटन विभाग ने भी इस स्थल को विकसित करने में विशेष रुचि दिखाया है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि एक जीवंत प्रतीक है उस शक्ति का जो भक्त की रक्षा करता है, संकट में मार्गदर्शन देता है और अंततः मोक्ष का द्वार खोलता है। यह स्थान सिखाता है कि अगर भक्ति सच्ची हो, तो स्वयं महादेव भी लोककल्याण के लिए प्रकट हो सकते 



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