रैगिंग, जो कभी "मजाक" और "नई पहचान" बनाने का साधन समझा जाता था, आज एक गंभीर सामाजिक और कानूनी अपराध के रूप में पहचाना जाता है। यह न केवल छात्रों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि कई बार जानलेवा साबित होता है। इसी गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने 12 अगस्त को रैगिंग-रोधी दिवस और 12 से 18 अगस्त तक “रैगिंग-रोधी सप्ताह” मनाने का आह्वान किया है।
वर्ष 2023 में UGC ने निर्णय लिया है कि छात्रों में जागरूकता फैलाने और रैगिंग को जड़ से खत्म करने के लिए हर साल 12 अगस्त को “रैगिंग-रोधी दिवस” और एक सप्ताह तक विशेष अभियान चलाया जाएगा। इस पहल का उद्देश्य है—"शिक्षा संस्थानों को सुरक्षित, सम्मानजनक और सहयोगपूर्ण वातावरण प्रदान करना।"
रैगिंग का शिकार बनने वाले नए छात्र अक्सर डर, अवसाद, चिंता और आत्मविश्वास की कमी से जूझते हैं। कई मामलों में यह उत्पीड़न इतना गंभीर हो जाता है कि छात्रों की जान भी चला जाता है। मानसिक असर के कारण तनाव, पढ़ाई में गिरावट, अवसाद। शारीरिक असर में मारपीट, चोट, गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं। सामाजिक असर में छात्र का आत्मविश्वास टूटना और पढ़ाई छोड़ने तक की नौबत।
भारत में रैगिंग एक दंडनीय अपराध है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, दोषी पाए जाने पर छात्रों को कॉलेज से निलंबित या निष्कासित किया जा सकता है। आपराधिक मामला दर्ज कर सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है। संस्थान पर भी कार्रवाई हो सकती है यदि वह रैगिंग रोकने में विफल रहता है।
NMC और UGC ने इस सप्ताह के दौरान चिकित्सा और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों को कई गतिविधियां आयोजित करने का निर्देश दिया है। जागरूकता रैलियां- छात्रों को रैगिंग के खिलाफ एकजुट करने के लिए।
सेमिनार और वर्कशॉप- कानूनी प्रावधान और मनोवैज्ञानिक असर पर चर्चा। शपथ ग्रहण- सभी छात्रों और स्टाफ द्वारा रैगिंग न करने और न सहने की प्रतिज्ञा। पोस्टर और निबंध प्रतियोगिता- रचनात्मक तरीके से संदेश फैलाना।
रैगिंग का कोई औचित्य नहीं है। यह न "परंपरा" है और न ही "मजाक", यह एक अपराध है। 12 अगस्त को “रैगिंग-रोधी दिवस” और 12 से 18 अगस्त तक “रैगिंग-रोधी सप्ताह” का आयोजन सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक मजबूत संदेश है कि " सब मिलकर रैगिंग को हमेशा के लिए खत्म कर सकते हैं।"
